SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ अभिनव प्राकृत-व्याकरण जजो< जय्य:-य्य के स्थान पर ज । सेज्जा<शय्या- , , भज्जाभा --- के स्थान पर ज । कजं कार्य्यम्- , , वज्ज-वर्य्यम्-र्य के स्थान में ज्ज । पन्जाओ< पर्यायः पज्जन्तंरपर्यन्तम्विशेष-शौरसेनी में र्य के स्थान पर प्य भी पाया जाता है। ( १६१ ) ध्य के स्थान में झ एवं म्न और ज्ञ के स्थान में ण आदेश होते हैं। यथा माणं<ध्यानम्-ध्य के स्थान पर झ आदेश उवभाओ< उपाध्यायः-५ का व, ध्य का झ, य लोप, अ स्वर शेष और विसर्ग को ओत्व। समाओ< स्वाध्यायः-ध्य के स्थान पर ज्झ । मझ< मध्यंअज्झाओ< अध्याय:- , तथा य लोप अ स्वर शेष और ओत्व। निण्णं निम्नम्-म्न के स्थान पर ण । पज्जुण्णो < प्रद्युम्न:-प्र के स्थान पर प, यु के स्थान पर ज्जु और म्न के स्थान पर पणो । णाणं ज्ञानम् - ज्ञ के स्थान पर पण आदेश । संण्णा< संज्ञापण्णा< प्रज्ञाविण्णाणं< विज्ञानम्- , , और न के स्थान पर हैं। (१६२ ) समस्त और स्तम्ब शब्द के स्त को छोड़कर अन्य स्त के स्थान में थ आदेश होता है । यथा हत्थोर हस्त:--स्त के स्थान पर स्थ आदेश हुआ है। थोत्तं< स्तोत्रम्-स्तो के स्थान पर थ तथा त्र में संयुक्त त + र में से र का लोप और त को द्वित्व। १. साध्वस-ध्य-ह्यां ज्ञः ८।२।२६. हे० तथा म्नज्ञोणः ८।२।४२. हे । २. स्तस्य थोसमस्त-स्तम्बे ८।२।४५. हे० ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy