________________
अभिनव प्राकृत-व्याकरण (१५३ ) एक और स्क के स्थान में ख-आदेश होता है, यदि उन संयुक्ताक्षरों से घटित शब्द द्वारा किसी संज्ञा की प्रतीति होती हो ।' यथा
पोक्खरं पुष्करम् -क के स्थान पर क्ख हुआ है । पोक्खरिणी< पुष्करिणी , " खंधो< स्कन्धः-स्क के स्थान पर ख । खंधावारो< स्कन्धावार:-स्क के स्थान पर ख । अवक्खंदो< अपस्कन्दः-स्क के स्थान पर क्ख हुआ है ।
दुक्करं<दुष्करम्-संज्ञा न होने से एक के स्थान पर ख आदेश नहीं हुआ, किन्तु संयुक्त प का लोप और क को द्वित्व ।
निकाम< निष्कामम् -
सक्कयं< संस्कृतम्-संज्ञा न होने से स्कृ के स्थान पर क्ख नहीं हुआ, किन्तु स का लोप और क को द्वित्व ।
निकंपं< निष्कम्पम्-क के स्थान पर ख नहीं हुआ किन्तु ए लोप, क को द्वित्व ।
निक्कओ< निष्कृत:-कृ के स्थान पर क्ख नहीं हुआ, किन्तु ष् का लोप, क को द्वित्व, ऋ का अ।
नमोक्कारो < नमस्कार:-स्क को क, अ को ओ, स लोप और क को द्वित्व । सक्कारो(सत्कार:-त् लोप और क को द्वित्व । तक्करो तस्कर:-स्क के स्थान पर ख नहीं, स लोप और क को द्वित्व । (१५४ ) अष्ट्र, इष्ट और संदष्ट शब्द के ष्ट को छोड़कर अन्य ट के स्थान में 3 आदेश होता है। यथा
लट्ठी < यष्टि—य के स्थान पर ल और ष्ट के स्थान पर ठ तथा द्वित्व, पूर्व ठ के स्थान पर ट एवं ईकार को दीर्घ ।
मुट्ठी< मुष्टिः-ट के स्थान पर ट्ट और ह इकार को दीर्घ ।
दिदी दृष्टिः-दृ में रहनेवाली ऋ के स्थान पर इकार; ट के स्थान में ? और इकार को दोघं। .
सिट्टी< श्रेष्ठिः-संयुक्त रेफ का लोप, तालन्य श के स्थान पर दन्त्य स, एकार को इकार तथा ष्ठ को 8 और इकार को दोर्घ ।
१. ष्क-स्कयो म्नि ८।२।४. हे० । २. टस्यानुष्ट्रष्टासंदष्टे ८।२।३४-हे.