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________________ ____( Rs 2/1126772) अर्थ हेमारली! जो ध्यायकजन शकमल समूह बीजेसीकान्निवाली. यापक के माथे पर टीडई, मस्तक को अमृतरमों से सिञ्चन करती मोमिका , स्वरूप का ध्यान करता है। उसके परख ले. गंगानही केलनको समान अल स्पर महारवाली वाणी स्फुरायमाणहोती // 1 // है देवी सरस्वती! सुन्धतीरसमुह से निकला हुआ महाविनाय के चलायमान प्रणापन के समान विकसित सौपने वाला कमल श्रीगुमर हैं जोकि चन्द्रमान देदीप्यमान कार्यकावाली मयान जिन्स कमल के पाव विस्वी है,लशालीच गुफाजलास्थान, वहां उसकी जया अपनामार को जो छनमय में होता है। बाझी/ गल्सना नसीई सम्वन्धी समुहमी समान धायक का वचन समान निकलना // 2 // हेमानती! नातुल्य श्वेत क्रमल की शुफाहयकमल प्रवेशाकरती हुई, सुपरम को वर्षाती और यार. मालाको पहनीमकोरवकर भत्तो कवाणी होजाती है। जोकि हजारोंयन्यों मैकडों शाकाकी नर द्वारा चलेती।। नागाहोती! मोतीपय सबपणों ने पित, खेलनी पहनी हुई, अमृततरंग के समान शुभपवाली, वीणा पुस्तक मुक्तामय अममाला और श्वेत क्रमल से शोभित हाथ वाली वम की जो अपने = समयक्रमल में हरवला, वह स्प छन्द समूह रचना की चतुरता में चिन्तामाण नहीं होता क्या अर्थात पेसालेनापका ध्यान पल-गद्यापामयरचनाकला में सोनम से जाना॥४॥ -----------सरस्वती। जो कोई - निन्दन परामजसेशोभित नयातेजी लेनी एवं आललारंग समान वर्णमालानी पहनी हुई छोटीजवनयावाली तुमकीजो कोई देवता उन अनुरानी-- होकरकामज्वरो चिल्ला उरामामृगसन्तानले मानव वाली युवतीया मिठीतही अशा जाती है। प्रा
SR No.032031
Book TitleSarasvatina Bhinna Bhinna Swarupo
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages124
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size16 MB
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