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________________ ली पटुतरतुरि वीचयस्तंतु माखला पः सुपेन प्रधुरितनलिका वायकुन्द कुविन्द राजद्यादिदमुपकरणै मुक्ति चीर यतीनां । रास शर्मसारं शुचिसुरसमयी शारदा देवता वः ॥ ५ सचं सारस्वतं या श्रुतिरिह‌ पूरा न्य स्मशान्तं श्रीभूय सिद्धिं नयत्विषयले भू (लू) ष मुख्मै- ईषीन्द्रैः । सौमं निर्माय कर्म त्रिभुवन‌ जनता शर्मेंद शर्मादिश्यात् । 1 विवेकवन्द्या किल कमलभयी भारती साभृशं वः ॥1000 बालीन्दि कालिन्दीनी र काली रयभिदुरदृश (ष) द्राव उग्रादरांवः । सिधु स्वाम्बु सिन्धु स्तटगसुरगृह श्रृंगरि गध्वजानां निम्यं यस्याः मुदा भूतू विषुधपतिधनु द्यौति विद्युद्वपुर्वी गदृश्या कचित्सा किलजगतिगिरौ रातु वेटली सुखाति || प्या
SR No.032031
Book TitleSarasvatina Bhinna Bhinna Swarupo
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages124
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size16 MB
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