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________________ पुराणों में सरस्वती की प्रतिमा ७१ सम्पूर्ण तन्मात्राओं के योग से जगत् की सृष्टि मानी गई है और चूंकि वह स्वयं सम्पूर्ण तन्मात्राओं की जननी हैं, अत एव युक्तमेव उनको जगदुत्पादयित्री कहा गया है । उत्पत्ति में जल की मूलतः आवश्यकता होती है, सम्भवः इसी कारण अपने कमण्डलु में जलधारण द्वारा, जल के साथ अपने प्राचीनतम संसर्ग को । इस जल को साधारण जल की अपेक्षा दिव्य माना गया है तथा वस्था में ही यह उनके कमण्डलु में रखा हुआ समझना चाहिए ।" व्यक्त करती केवल दिव्या सरस्वती- हस्त-धारित वीणा की कुछ कम महत्ता नहीं । कहा गया है कि वीणा सिद्धि अथवा प्रवीणता का प्रतिनिधित्व करती है । साथ-साथ अपने हाथ में वीणा एवं पुस्तक धारण करने से उनका पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध प्रकट होता है । वह प्रमुख रूप से वागधिष्ठात्री देवी हैं, अत एव वाक् प्रतिनियम का प्रतिनिधित्व नितान्त सहज है । यही कारण है कि ब्राह्मणों में उन्हें पुनः पुनः 'वाग्वै सरस्वती" कहा गया है । वाक् का विभाजन मोटे तौर पर ध्वनि एवं शब्द ( पद + वाक्य) में किया जा सकता है तथा पुस्तक का सम्बन्ध वाक् से माना जा सकता है एवं वीणा का सम्बन्ध ध्वनि से | सरस्वती के हाथ में केवल वीणा पाई जाती है, कोई अन्य वाद्य यन्त्र नहीं, इसका कारण ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार उसकी प्राचीनता कही जा सकती है । सङ्गीत मानसिक एकाग्रता का महान् साधन माना गया है । वीणा यन्त्रों में सर्वोत्कृष्ट वाद्य यन्त्र है, क्योंकि सोम-संगीत उत्पन्न करने में वह महान् सहायक सिद्ध हुआ है । " समय सदैव गतिमान् है, अत एव जब सरस्वती हस्तधारित अक्षमाला को समय का प्रतिनिधित्वकारिणी माना जाता है, तो उससे समय- गति अथवा काल - मापन का बोध होता है । १. तुलनीय ब्रह्मवैवर्त पुराण, २.१.१ आगे । २. तुलनीय स्कन्दपुराण, ६.४६.१६ ३. डॉ० प्रियबाला शाह, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० १८६ ४. तुलनीय वही, फूट नोट २, पृ० १ ५. तुलनीय देवीभागवतपुराण, ३.३०.२ ६. डॉ० प्रियबाला शाह, पूर्वोद्धृत ग्रंथ, पृ० १८५
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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