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________________ संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ वेद-वाचक ठहरा । 'वेद' शब्द स्वतः सामान्यतया चारो वेदों का बोध कराता है, अत एव चारो वेदों से उनके चारो मुखों के साथ तादात्म्य सर्वथा युक्त है। इसी प्रकार का अर्थ सरस्वती के चारो मुखों से लगाया जाना चाहिए । उनके तीन मुखों की कल्पना प्रमुख तीन वेदों-ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद में की गई है, क्योंकि उन्हें त्रयीविद्या' कहे जाने का यही कारण प्रतीत होता है। तद्वत् उनके पाँच मुखों की कल्पना पाँच वेदों में की जा सकती है । पाँच वेदों से तात्पर्य-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद एवं नाट्यवेद से है । कहा जाता है कि जिस प्रकार ब्रह्मा ने चारो वेदों का निर्माण किया, उसी प्रकार उन्होंने पाँचवाँ 'नाट्यवेद' बनाया । 'नाट्यवेद' अन्य वेदों से श्रेष्ठ माना गया हैं, क्योंकि ब्रह्मा ने चारो वेदों का स्मरण करके उनके अङ्गों से इसका निर्माण किया है। चूंकि सम्पूर्ण शास्त्र एवं कलाएँ नाट्यवेद में अन्तर्भूत हो जाती हैं; वेद की प्रतीक होने से सरस्वती को इसी कारण सभी कलाओं एवं विज्ञानों का प्रतिनिधित्व करती हुई, उनको ‘सर्वसङ्गीतसन्धानतालकारणरूपिणी" कहा गया है। ३. सरस्वती के हाथों की संख्या एवं तत्रस्थ वस्तुएँ: पुराणों में सरस्वती के हाथों की संख्या स्थान-स्थान पर भिन्न-भिन्न पाई जाती है । उनमें अधिकतर उनके चतुर्हस्ता होने का सङ्कत पाया जाता है, परन्तु कतिपय पौराणिक उपाधियों-यथा 'वीणापुस्तकधारिणी" से उनके द्विहस्ता होने का १. पद्मपुराण, ५. २७.११७-१८ "देवैः कृता सरस्वती स्तुतिः 'त्वं सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा त्वं पवित्र मतं महत् । संध्या रात्रिः प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती' । ११७।। यश-विद्या महाविद्या च शोभना । आन्विक्षिको त्रयीविद्या दण्डनीतिश्च कथ्यते ॥११८॥ विष्णुपुराण, १. ६. ११६-१२१ पूर्वार्द्ध तुलनीय राम प्रसाद चन्द, दि इण्डो आर्यन रेसेस, ए स्टडी ऑफ दि ओरिजन ऑफ दि इण्डो आर्यन पीपुल एण्ड इण्स्टीट्यूसन्स (वरेन्द्र रिसर्च सोसाइटी, राजशाही, १९१६), पृ० २२८-३० २. भरत, नाट्यशास्त्र, १. १५-१६ "सर्वशास्त्रार्थसम्पन्नं सर्वशिल्पप्रवर्तकम् । नाट्याख्यपञ्चमं वेदं सेतिहासं करोम्यहम् ॥ एवं संकल्प्य भगवान् सर्ववेदाननुस्मरन् । नाट्यवेदं ततश्चक्र चतुर्वेदाङ्गसम्भवम् ॥ ३. वही, १.१५ ४. जे० डाउसन, क्लासिकल डिक्शनरी ऑफ हिन्दू माइथालोजी, (राउटलेज एण्ड केगन पोल लि०, लन्दन, १९६१), पृ०२८४ ५. ब्रह्मवैवर्तपुराण, २.१.३४ ६. वही, २.१.३५, २.५.५
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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