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________________ संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झांकियां तदनन्तर पूर्वकथित मार्गों से होती हुई कुरुक्षेत्र पहुँचती है तथा 'कुरुक्षेत्रप्रदायिनी" की उपाधि ग्रहण करती है । सरस्वती का एक अन्य नाम 'अंशुमती' है। यह नामकरण सर्वथा साभिप्राय है । 'अंशुमती, कुरुक्षेत्र की सरस्वती ही है, जिसका तात्पर्य 'सोम से परिपूर्ण' है। कहा गया है कि एक बार सोम, वत्र के भय से भागकर 'अंशमती में छुप गया। । फलस्वरूप देवगण भी वहीं आकर रहने लगे तथा वहाँ 'सोमयज्ञ' की स्थापना की । यह यह 'अंशुमती' निश्चय ही 'वैदिक सरस्वती' है । ब्राह्मण ग्रन्थों में देवों का सोम के प्रति अत्याकर्षण दिखा गया है । वाक (वाणी) सोम-प्रदान करने में देवों की अभूतपूर्व सहायता करती है । इस वाक् को सरस्वती का विकासात्मक रूप समझना चाहिए, ब्रह्माणिक सिद्धान्त 'वाग्वै सरस्वती' के द्वारा सरस्वती सिद्ध किया गया है । कुरुक्षेत्र के बाद सरस्वती राजस्थान के 'पुष्कर से होती हुई कच्छ में जा गिरती है। २. सरस्वती की पौराणिक पवित्रताः प्रारम्भ काल से ही आर्यों ने अपने धार्मिक कार्यों एवं यज्ञों में सरस्वती को महती प्रतिष्ठा दे रखी थी। इसका प्रमाण यह है कि ऋग्वैदिक कालीन यज्ञों में उसका बारम्बार आह्वाहन किया गया है । सम्भवतः उसको यज्ञ की देवी ही मान कर ऐसा किया गया है। पुराणों ने भी उसकी वैदिक प्रतिष्ठा को जीवित रखा है । ब्रह्माण्डपुराण में एक स्थल पर कावेरी, कृष्णवेणा, नर्मदा, यमुना, गोदावरी, चन्द्रभागा, इरावती, विपाशा, कौशिकी, शतद्रु, सरयु, सीता, सरस्वती, ह्लादिनी तथा पावनी नदियों का विवाह अग्नि के साथ बताया गया है। अग्नि को प्रकाश एवं पवि. त्रता का प्रतीक माना गया । जब अग्नि का तादात्म्य सरस्वती से किया जाता है, तब अपरोक्ष-रूप से अग्नि के गुणों का सरस्वती पर आधान हुआ। ब्रह्माण्डपुराण के उपयुक्त कथन का तात्पर्य सम्भवतया यह जान पड़ता है कि आर्य लोग इन नदियों के १. वामनपुराण, ३२।१ २. डॉ० सूर्यकान्त, सरस, सोम एण्ड सीर', ऐनल्स प्रॉफ द भण्डारकर मोरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीच्यूट, भाग-३८ (पूना, १९५८), पृ० ११५ ३. तु० मुहम्मद इसराइल खाँ, ब्राह्माणिक लेजेण्ड ऑफ वाक् एण्ड गन्धर्वस्', मैसूर ओरिएण्टलिस्ट, भाग-२, न० १ (मैसूर, १९६६), पृ० २६-२७ ४. वामनपुराण, ३७।२३ ५. एन. एन. गोडबोले, पूर्वोद्धृत ग्रन्थ, पृ० २,३२-३३ ६. तु० ऋग्वेद, १।३।१०-११।१३६ (५.५.८), १४२।६; ३४।८ (७।२।८) ४३।११; ७।६५।४; १०।१७।८-११०।८ ७. ब्रह्माण्डपुराण, २।१२।१३-१६ ८. ऋग्वेद, २।१।११
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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