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________________ सरस्वती के कतिपय ऋग्वैदिक विशेषणों की विवेचना २३ (ग) जो घी का वर्षण करती है, इस शब्द के सूक्ष्म विवेचन से सरस्वती की क्रमिक विकासावस्था का भाव होता है । यदि वह जल-वर्षण करती है अथवा जल का दान देती है, तो वह निश्चय-रूप से नदी-स्वरूपा है तथा अपने जलों द्वारा समीपस्थ वैदिक आर्यों की जल-सम्बधी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करती है । यदि वह याज्ञिकों द्वारा दी गई बलि को यज्ञों में स्वीकार करती है, तो असंदिग्ध-रूप से उसका स्वरूप पार्थिव नदी-मात्र से उठता जा रहा है और उसका व्यक्तित्व शनैः शनैः देवतात्व को प्राप्त करता जा रहा है। चर्म-चक्षओं के लिए इस प्रकार संवर्धन को प्राप्त होता हुआ रूप अधिक आनन्द का विषय बन जाता है । 'घृतम्' का अर्थ क्षरण भी होता है । यह क्षरण वाग्देवी सरस्वती का शब्दार्थ-रूप-क्षरण है। इसी क्षरण-रूप उसके कार्य से ज्ञान का प्रसार होता है, क्योंकि वह स्वयं 'ज्ञानवती' अथवा 'धीर्वती' है, अत एव 'घृताची२२ जिसका अर्थ 'प्रकाशवती' अथवा 'ज्ञानवती' किया गया है, सर्वथा उपयुक्त है। 'घताची' शब्द हमें सरस्वती के उस क्रियात्मक कार्य की ओर भी हठात आकृष्ट करता है, जबकि वह अपनी बहनों के साथ 'मिल्श काउ' अर्थात् दूध देने वाली गौ के रूप में गृहीत है तथा जिन सब के हाथ 'घृता' हैं । यह बात भी यहाँ अविस्मरणीय है कि क्या सरस्वती सत्यतः लोगों के घरों में अथवा लोगों के हाथों में घूम-घूम कर घी, मक्खन और मधु का दान किया करती थी। इस बात का समाधान हमें दो रूपों में मिलता है । एक तो यह कि सरस्वती का जल बड़ा मीठा, स्वादु एवं स्वास्थ्य-वर्वक रहा होगा । लोग उसका पान कर बड़े-बड़े राज-रोगों को मिटाने में समर्थ रहे होंगे । अस्तु, कुछ इसी प्रकार के अभिप्रायों में सरस्वती के घी, मक्खन तथा मधु देने के कार्यों की इतिश्री समझनी चाहिए। _ 'घृताची' शब्द जहाँ एक ओर इस अर्थ को द्योतित करता है, वहीं इससे एक दूसरा अर्थ भी लक्षित होता है, जो महत् महत्त्वपूर्ण है । यह बात बिना किसी प्रमाण के सत्य सी जान पड़ती है कि सरस्वती के किनारे बसने वाले वैदिक आर्य, समीपवर्ती जलवायु के पशुओं के अनुकूल होने के कारण गौओं का पालन अधिक करते रहे हों और उन लोगों के पास गौ-सम्पत्ति एक श्रेष्ठ धन-राशि रही हो। इसमें तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होगी, यदि यह कहा जाय कि गो-संवर्धन हमारे बाप-दादों का एक आकर्षक पेशा रहा है, जिसके ऋग्वेद में अनेक छिट-पुट प्रमाण मिलते हैं । इस विचार-धारा की पुष्टि और भी प्रबल हो जाती है, जबकि एक मंत्र२३ में राजा नाहुष का वर्णन आता है, जिनके लिए सरस्वती ने 'घृत' का २१. वही, १.२.७ २२. वामन शिवराम आप्टे, दि प्रैक्टिकल संस्कृत-इङ्गलिश डिक्शनरी (पूना, १८१०), पृ० ४७८ २३. ऋ० ७.६५.२
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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