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________________ संस्कृत - साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ चित्रित किया गया है । उसे यह उपाधि उसके दयालु स्वभाव तथा अन्यों के प्रति वत्स - लता के कारण दिया गया है । चतुर्थ अध्याय का नाम 'अथर्ववेद में सरस्वती का स्वरूप' है । हम सामान्यतः जानते हैं कि अथर्ववेद में अनेक ओषधियों तथा औषधों का वर्णन है । इन ओषधियों तथा औषधों का विभिन्न देवों से सम्बन्ध है । इस अध्याय के प्रथम शीर्षक में सरस्वती को चिकित्सा - विद्या से सम्बद्ध करते हुए स्तवन किया गया है कि वह अग्नि, सविता तथा बृहस्पति के साथ मनुष्य की खोई शक्ति को लाए तथा थके अङ्गों को धनुष के समान दृढ बनाये । इस सम्बन्ध में कतिपय जड़ी-बूटियों का वर्णन किया गया है, जिनका देवों से सामान्य सम्बन्ध प्रदर्शित किया गया है । अथर्ववेद के एक मंत्र में बताया गया है कि जड़ी-बूटी असुरों की पुत्री हैं, देवों की बहन हैं तथा यह स्वर्ग और पृथिवी से उत्पन्न हुई हैं। शरीर में अनेक रोग के कीटाणु हैं । वे हमारे शरीर को नष्ट करने के लिए कटिबद्ध रहते हैं, परन्तु देव हमारे शरीर की रक्षा सतत् करते हैं, अन्यथा किसी समय शरीर पात हो सकता है । हम विभिन्न रोगों को ओषधियों के सेवन से दूर करते हैं, क्योंकि उनका विभिन्न देवों से सम्बन्ध है तथा देवों के अंशों का प्रभाव उन ओषधियों पर है । दूसरे शीर्षक में धन से आने वाली अनेक बुराइयाँ बताई गई हैं । इन बुराइयों के कारण मनुष्य अपना नैतिक तथा चारित्रिक मूल्य खो देता है । धन की कमी तथा आधिक्य अनेक आपदाओं को लाता है । इस सम्बन्ध में अथर्ववेद के कतिपय मंत्रों में सम्पत्ति के स्वरूप तथा बुराइयों का मनोहारी वर्णन है । धन के कारण मनुष्य में अहङ्कार आ जाता है । वह दूसरों के प्रति कठोर हो जाता है, फलतः इस वेद में मनुष्य को उपदेश दिया गया है कि सरस्वती की शरण में जाये, जिससे उसमें कोमल विचार तथा सत्य वाणी जन्म लें । तीसरे शीर्षक में सरस्वती का रक्षाकार्य प्रदर्शित है । चौथे शीर्षक में सरस्वती तथा मनुष्य की दैवी शक्ति का वर्णन प्रस्तुत किया गया है । विभिन्न देवों की शक्तियों का वर्णन करने के पश्चात् सरस्वती से प्रार्थना की गई है कि वह मनुष्य को आवश्यक वायु तथा श्वास प्रदान करे । पाँचवाँ शीर्षक सरस्वती तथा विवाह सम्बन्धी है । इस प्रसङ्ग में दो सूक्तों को प्रस्तुत किया गया है । प्रथम सूक्त में सूर्या को अपने पति-गृह गमन करते हुए प्रस्तुत किया गया है । इस देवी विवाह के माध्यम से लौकिक विवाह की ओर संकेत किया गया है तथा उसके लिए आदर्श प्रस्तुत किया गया है। दूसरे सूक्त में वधू को शिक्षा दी गई है कि वह अपने पति को विष्णु के समान समझे । इस प्रसङ्ग में सरस्वती तथा सिनीवाली का वर्णन मिलता है । इनसे प्रार्थना की गई है कि ये देवियाँ वधू को सन्तान तथा सौभाग्य प्रदान करें । तदनन्तर सरस्वती को एकता और मित्रता लाने वाली बताया गया है । आगे सरस्वती का कृषि से सम्बन्ध दिखाया गया है । इस सन्दर्भ से सरस्वती को नदी रूप से प्रस्तुत किया गया है, क्योंकि इसका जल तथा इसके आस-पास की भूमि कृषि के लिए अत्यन्त अनुकूल है । यहाँ इन्द्र को हल का स्वामी तथा मरुतों को कृषक रूप में प्रस्तुत कर
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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