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________________ ऋग्वेद में देवियों का त्रिक 'रश्मिरूपा २७ कहा है । इसी प्रकार उन्हों ने सरस्वती को 'माध्यमिका वाक् माना हैं । उन्हों ने सरस्वती की इस रूप में व्याख्या करते हुए उसे 'स्तनितादिरूपा' कहा है, जिस का स्थान अन्तरिक्ष है । पुनः सरस्वती की व्याख्या करते हुए कहते हैं : "सरस्वती सरः वागुदकं वा । तद्वत्यन्तरिक्षदेवता तादृशी ।”” स्तनित या ध्वनि वायु द्वारा बाह्य है, अत एव सरस्वती वायुरूपा है अथवा वायु की नियन्तृ है ।" अन्यत्र अनेकशः उसे 'माध्यमिका वाक्' कहा गया है ।" इला पार्थिवी वाणी ( पार्थिवी प्रेषादिरूपा ) है । " तीनों देवियों को तीन वाणियाँ बताते हुए उन्हें तीनों वाणियों की अधिष्ठातृ देवियाँ भी माना गया है, तथा वह कथन वेद-सिद्धान्तानुगत भी है : " एतास्तिस्रः त्रिस्थानवागभिमानिदेवताः । ऋग्वेद में इला, सरस्वती तथा भारती का अग्नि से समन्वय भी उपलब्ध होता है । ऋग्वेद में उन्हें 'अग्निमूर्तयः "" कहा गया है, इस कथन से ऊपर का भाव स्वयमेव स्पष्ट है । अग्नि तेजस् ( brilliance intelligence) का प्रतीक है । पृथिवी पर स्थित अग्नि सूर्य के रूप को अभिव्यक्त करता है तथा वह सूर्य वस्तुतः द्युलोकवासी है। भारती का सूर्य" तथा मरुतों से घनिष्ठ सम्बन्ध है ।" यही कारण है कि भारती को 'मरुत्सु भारती' कहा गया । मरुत् आँधी-पानी तथा प्रकाश के देवता हैं तथा वे अन्तरिक्ष-स्थानीय हैं । मरुतों के सम्बन्ध से भारती अन्तरिक्ष स्थानीय हुई, परन्तु वास्तविक रूप से वह द्युलोक स्थानीय है । वस्तुतः सरस्वती ही अन्तरिक्ष स्थानीय है और यदि दोनों को अन्तरिक्ष स्थानीय प्रदर्शित किया गया है, तो इस प्रकार वाक् का एकत्व भिन्नता होते हुए भी प्रदर्शित है । यह दृष्टान्त क्रमशः हमें वाक् की तादात्म्यता की ओर ले जा रहा है । अग्नि को बीच में डालकर ज्ञान के महा स्रोत 'सूर्य' से उन को समुद्भूत जानना चाहिए । ६७ २७. वही, २.१.११ २८. सायण - भाष्य, वही, १.१४२.६, सरस्वती । सर इत्युदकनाम तद्वती स्तनितादिरूपा माध्यमिका च वाक्" २६. वही, १.१८८.८ ३०. वही, २.१.११, "सरस्वती सरणवान् वायुः । तत्सम्बन्धिनी एतन्नियामिका माध्यमिका" ३१. तु० वही, २.३०.८; ५.४३.११; ७.६६.२; १०.१७.७, ६५.१२ ३२. वही, १.१४२.६ ३३. वही, १.१४६.६ ३४. तु० विल्सन की टिप्पणी वही, १.१३.ε ३५. ऋ० १.१४२.६ ३६. वही, १.१४२.६
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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