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________________ १० संस्कृत-साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ इस उपकथा में ब्रह्मा तथा सरस्वती का वर्णन है । सरस्वती उषा से एक भिन्न देवी है। ऋग्वेद के एक मंत्र में दिखाया गया है कि जिस प्रकार एक लौकिक प्रेमी अपनी प्रेयसी का अनुगमन करता है, तद्वत् सूर्य दैवी उषा का पीछा कर रहा है। जिस प्रकार सरस्वती ब्रह्मा से सम्बद्ध है, उसी प्रकार उषा प्रजापति से सम्बद्ध है। इस सन्दर्भ में ऐतरेय-ब्राह्मण में निम्नलिखित प्रकार का वर्णन उपलब्ध होता है : प्रजापतिः स्वां दुहितरमभ्यध्यायद्दिवमित्यन्य आहुरुषसमित्यन्ये रोहितमभूताभ्येत्। यहाँ उषा उस उषा से भिन्न है, जो सूर्य से उसकी प्रेयसी के रूप में सम्बद्ध है । ऐतरेयब्राह्मण की उषा प्रजापति के पुत्री के रूप में वर्णित है । इस सम्बन्ध की सङ्गति ब्रह्मा तथा सरस्वती से नहीं बैठती है । इसकी सङ्गति भिन्न प्रकार से बैठाई जा सकती है । जब उषा आती है, तब वह देवों के स्वागतार्थ गीत (अर्चना) प्रस्तुतार्थ ऋषियों को जगाती है । उषा सूर्य के साथ आती है तथा सूर्य उषा को जन्म देता है। वैदिक-साहित्य में कहीं-कहीं प्रजापति तथा इन्द्र को सूर्य कहा गया है । इस प्रकार सूर्य एवं उषा को ब्रह्मा तथा सरस्वती के समकक्ष माना जा सकता है । साहित्य तथा कविकति में प्रकाश को ज्ञान का प्रतीक माना गया है । प्रकाश सर्वप्रथम उषा से आता है। तदनन्तर सूर्य से आता है । सूर्य उषा को प्रेरित करता है तथा यह उत्प्रेरणा ज्ञानउत्पत्ति-स्वरूप है । ऐतरेयब्राह्मण में सीतासावित्री अथवा सूर्यासावित्री को प्रजापति की पुत्री माना गया है । कुछ विद्वान् इस कथा को एक भिन्न रूप में वर्णित करते हैं। निस्संदेहतः प्रजापति संसार एवं प्राणियों का पति (स्वामी) है । उसने इस जगत् को स्वात्मा से उत्पन्न किया है। प्रजापति का समन्वय सन्वत्सर तथ। यज्ञ से भी पाया जाता है ।२१ सरस्वती के मूल में स धातु है, जिसका अर्थ गमन है । इस प्रकार सरस्वती वह है. जो मदेव गमन करने वाली है । वर्ष के रूप में प्रजापति अपनी नियन्तृ-शक्ति सरस्वती के माध्यम से परिभ्रमण करता है । जब प्रजापति का तादात्म्य यज्ञ से हो गया है, तब इस पौराणिक उपकथा के विषय की अनेक भ्रान्तियाँ दूर हो जाती हैं, क्योंकि यज्ञ में वैदिक मंत्रों का विनियोग होता है । इस विनियोग में वाक् पत्नी-स्वरूप है, जो पतिरूप प्रजापति से मिलती है । पौराणिक काल में प्रजापति (वैदिक) का व्यक्तित्व ब्रह्मा १८. ऋ० १.११५.२ १६. ऐ० ब्रा० ३.३३ २०. ते० ब्रा० २.३.१० २१. तु० वी० वी० दीक्षित, 'ब्रह्मन् एण्ड सरस्वती', द पूना ओरिएण्टलिस्ट, भाग ८ (१९४३), पृ० ६६
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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