SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मा और सरस्वती के मध्य पौराणिक प्रेमाख्यान ८५ होने पर ही होता है । मत्स्यपुराण में इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा गया है, परन्तु भागवतपुराण का कथन है कि सरस्वती सर्वप्रथम अनिच्छुक थी तथा उन्होंने सरस्वती का हृदय जीता। जब ब्रह्मा ने सरस्वती के साथ विवाह कर लिया, तब उनकी तपस्या की महत्ता समाप्त हो गई तथा उन्हें पुनः तपश्चरण करना पड़ा। इस तपस्या के फलस्वरूप उन्होंने अपने आधे शरीर से अपनी पत्नी को उत्पन्न किया । उनकी यह पत्नी सृष्टि को उत्पन्न करने में समर्थ थी तथा यह साक्षात् सौन्दर्य की मूर्ति थी । वह एक सुरभि के रूप में ब्रह्मा के समीप खड़ी रही । ब्रह्मा ने उसकी सङ्गति का आनन्द उठाया । उस सङ्गति से धुंए के समान वर्ण की सन्तति उत्पन्न हुई । प्रकृत सन्दर्भ में ब्रह्मा की स्त्री का साक्षात् रूप से नाम का उल्लेख नहीं है । सम्भवतः यहाँ सावित्री की ओर सङ्केत किया गया है, जिसकी पुष्टि निम्नलिखति कथन से होती है । ब्रह्मवैवर्तपुराण में सावित्री को ब्रह्मा की पत्नी बताया गया है । जब ब्रह्मा ने उसकी सङ्गति का आनन्द उठाया, तब वेद, शास्त्र, वर्ष, मास, दिन, रात्रि, सूर्य - ज्योति, उषा इत्यादि की उत्पत्ति हुई । पुराणों में सरस्वती तथा सावित्री का वर्णन विभिन्न प्रसङ्गों में हुआ है । प्रकृति के रूप में दोनों समकक्ष हैं तथा कतिपय अन्य प्रसङ्गों में उन्हें मूलत: एक माना गया है । कभी-कभी वे दोनों हमारे सम्मुख ब्रह्मा की दो पत्नियों के रूप में आती हैं ।" १. ब्रह्मा एवं सरस्वती के प्रेमाख्यान का स्रोत : इस कथा का मूल स्वतः ऋग्वेद में उपलब्ध होता है । इस प्रसङ्ग में एक मंत्र निम्नलिखित प्रकार का है । महे यत् पित्र ईं रसं दिवे करव त्सरत् पृशन्यश्चिकित्वान् । सृजदस्ता धृषता दिद्यस्मै स्वायां देवो दुहितरि त्विषि धात् ॥ इसी प्रकार ऋग्वेद के दशम मण्डल के कुछ मन्त्र इसी प्रसङ्ग में अत्यन्त उपादेय हैं तथा उनमें तीन मंत्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । ऊपर के उद्धृत मंत्र में 'पित्रे' देवों के उस समूह के रूप में आया है, जो स्वर्ग में निवास करता है । 'दुहितरि' प्रकाश का द्योतक है । सायणाचार्य इसका अर्थ करते हैं: "उषः काले हि सूर्यकिरणाः प्रादुर्भ २. भागवतपुराण, ३.१२.२८ ३. मत्स्यपुराण, १७१.२०-२३ ४. वही, १७१.३४-३६ ५. ब्रह्मवैवर्तपुराण, १.८.१-६ ६. वही, २.१.१,४.४ ७. मत्स्यपुराण, ३.३०-३२ ८. ऋ० १.७१.५
SR No.032028
Book TitleSanskrit Sahitya Me Sarasvati Ki Katipay Zankiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuhammad Israil Khan
PublisherCrisent Publishing House
Publication Year1985
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy