SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माँ सरस्वती ७३ श्री सरस्वती साधना विभाग - महाप्रभावी श्री सरस्वती स्तोत्र विभाग श्री बप्पभट्टिसूरि कृत-अनुभूत सिद्ध-सारस्वत-स्तवः। कल मराल विहंगम वाहना, सित दुकूल-विभूषण लेपना । प्रणत भूमि रुहा मृत सारिणी, प्रवर देह विभाभर धारिणी ॥१॥ • अमृत पूर्ण कमण्डलु धारिणी, त्रिदश दानव-मानव सेविता । भगवती परमैव सरस्वती, मम पुनातु सदा नयनाम्बुजम् ॥२॥ जिनपति प्रथिता खिल वाङ्मयी, गणधरानन मण्डप नर्तकी । गुरु मुखाम्बुज-खेलन हंसिका, विजयते जगति श्रुतदेवता ॥३॥ • अमृत दीधिति-बिम्ब-समाननां, त्रिजगति जन निर्मित माननाम् । नवरसामृत वीचि-सरस्वतीं, प्रमुदितः प्रणमामि सरस्वतीम् ||४|| वितत केतक पत्र विलोचने, विहित संसृति-दुष्कृत मोचने । धवल पक्ष विहंगम लाञ्छिते, जय सरस्वति ! पूरित वाञ्छिते ॥५|| • भव दनुग्रह लेश तरंगिता, स्तदुचितं प्रवदन्ति विपश्चितः । नृप सभासु यतः कमलाबला, कुचकला ललनानि वितन्वते ।।६।। • गतधना अपि हि त्वदनुग्रहात्, कलित कोमल-वाक्य सुधोर्मयः । चकित बाल कुरंग विलोचना, जन मनांसि हरन्ति तरां नराः ||७|| . कर सरोरुह-खेलन चंचला, तव विभाति वरा जपमालिका | __ श्रुति पयोनिधि मध्य विकस्वरो, ज्ज्वल तरंग कलाग्रह-साग्रहा ||८|| . द्विरद केसरि मारि भुजंगमा, सहन तस्कर राज रूजां भयम् । तव गुणावलि गान तरंगिणां, न भविनां भवति श्रुतदेवते ॥९॥ ॐ ह्रीं क्लीं ब्लूँ ततः श्री तदनु हस कल ही अथो एँ नमोऽन्ते, लक्षं साक्षा ज्जपेद् यः कर समविधिना, सत्तपा ब्रह्मचारी । निर्यान्ती चन्द्रबिम्बात् कलयति मनसा, त्वां जग च्चन्द्रिकाभां, सोऽत्यर्थं वह्नि कुण्डे विहित धृत हुतिः स्याद् दशांशेन विद्वान् ।।१०।।
SR No.032027
Book TitleSamyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshsagarsuri
PublisherDevendrabdhi Prakashan
Publication Year2007
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy