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माँ सरस्वती
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श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग
श्री ज्ञानपद पूजा श्री कल्पसूत्र वांचन पूर्वे, श्री ज्ञानपंचमी दिने, आसो / चैत्र मास की शाश्वती ओली में तथा सूत्र के वांचन पूर्वे श्री जिनेश्वरदेव , श्री गुरुमहाराज तथा श्री ज्ञान सन्मुख श्री ज्ञानपद आराधना एवं सविशेष बहुमान निमित्ते नीचे मुजब पूजा पढानी चाहिए।
श्री लक्ष्मीसूरीश्वरजी महाराज कृत
श्री वीशस्थानक तप की पूजा में से अध्यातम ज्ञाने करी, विघटे भव भ्रम भीति,
सत्यधर्म ते ज्ञान छे, नमो नमो ज्ञाननी रीति, ज्ञानपद भजिये रे जगत सुहंकरूं, पांच एकावन भेदे रे सम्यग्ज्ञान जे जिनवरे भाखियुं, जडता जननी उच्छेदे रे, ज्ञानपद ।।१।। भक्षाभक्ष विवेचन परगडो, खीर नीर जेम हंसो रे, भाग अनंतमो रे अक्षरनो सदा, अप्रतिपाति प्रकाश्यो रे, ज्ञानपद ||२|| मन थी न जाणे रे कुंभकरण विधि, तेहथी कुंभ केम थाशे रे, ज्ञान दयाथी रे प्रथम छे नियमा, सदसदभाव विकासे रे,ज्ञानपद ||३|| कंचननाणुं रे लोचनवंत लहे, अधो अंध पुलाय रे,
एकांतवादी रे तत्व पामे नही , स्याद्वाद स्स समुदाय रे, ज्ञानपद ||४|| . ज्ञान भर्या भरतादिक भव तर्या, ज्ञान सकल गुण मूल रे,
ज्ञानी ज्ञानतणी परिणति थकी, पामे भवजल कूल रे, ज्ञानपद ||५|| अल्पागम जई उग्र विहार करे, विचरे उद्यमवंत रे, उपदेशमालामा किरिया तेहनी , कायक्लेश तस हुंत रे, ज्ञानपद ।।६।। जयंत भूपो रे ज्ञान आराधतो, तीर्थंकर पद पामे रे रविशशि मेह परे ज्ञान अनंतगुणी, 'सौभाग्यलक्ष्मी' हित कामे रे, ज्ञानपद ||७||