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सरस्वती वन्दना वन्दनीय माँ ! पूजनीय माँ ! हाथ जोडकर मैं तेरी करुं वन्दना, मेरी वन्दनीय माँ ! पूजनीय माँ !
मानव को उसका विश्वास छल रहा आज सुभ्रा ही को क्यों ? मधुपा न छल रहा, सरगम मे यह कैसी, यह विकल वेदना
मेरी वन्दनीय माँ ! पूजनीय माँ ! वसुधा क्यों व्यथित हुई, अंतरज्वाला से, बिखर रहे सुमन आज क्यों वनमाला से, अलसाई सी है क्यों ? मधुर कल्पना मेरी वन्दनीय माँ ! पूजनीय माँ !
मधुबन में कोयल ने बिरहा गाया क्यों ? पावस में आँखियों ने नीर बहाया क्यों ? पूनम की साँझ छिपा क्यो है चन्द्रमा ?
मेरी वन्दनीय माँ ! पूजनीय माँ ! जकड रहा अन्तरतम गहन अंधकार से तडफ रहा मन यह अज्ञान के विकार से बिखरा दो माँ, इसमें शुभ्र ज्योत्सना मेरी वन्दनीय माँ ! पूजनीय माँ !
कलुषित को निष्कलंक कर दे, माँ तू, कुंठा को आज नया स्वर दे, माँ तू, जागृत कर दे मन की सुप्त चेतना मेरी वन्दनीय माँ ! पूजनीय माँ !