________________
माँ सरस्वती
श्री सम्यग्ज्ञानोपासना विभाग सम्यग् दर्शन, चारित्र और तप भी तभी सफल होते है, जब उस में सम्यग्ज्ञान हो ... तभी तो कहा है- 'पढमं नाणं तओ दया' पहले ज्ञान और फिर दया ... लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी होते है, जो सिर्फ ज्ञानको ही मान देते है । परंतु, जिस तरह रथ के दो पहिये होते है, उसी तरह धर्म रथ के भी दो पहिये है, पहला है ज्ञान और दुसरा है क्रिया...
ज्ञान के बिना क्रिया व्यर्थ है ।
क्रिया के बिना ज्ञान व्यर्थ है ।
•
परंतु, खेद की बात तो यह है, आज के कलियुग में डॉक्टर / इंजिनियर / वकील / बी. कॉम./एम.ए./सी. ए. आदि की पढाई करनेवाले हमारे लोगों को दो प्रतिक्रमण तो क्या, गुरुवंदन और चैत्यवंदन करना भी नही आता । जितनी मेहनत मिथ्याज्ञान- व्यवहारिक ज्ञान के पीछे है, उसके १% मेहनत भी इस सम्यग्ज्ञान को पाने नहीं करते ।
सम्यग्ज्ञान को छोडके मिथ्याज्ञान को पाना याने
•
४
·
जब कि, ज्ञानयुक्त क्रिया ही मोक्ष है ।
मोक्ष तक पहुँचने दोनों की अत्यंत जरुरत है 'ज्ञान-क्रियाभ्यां मोक्षः ' । ऐसे सम्यग्ज्ञान को पाने अंतर में तीव्र झंखना उत्पन्न होनी चाहिए ।
रत्न को छोडके काँच के टुकडे ग्रहण करने जैसी नादानी है ।
गंगा में स्नान करने के बजाय तालाब के गंदे नीर में डुबकी लगाने जैसा बचपना है ।
चंदन वृक्ष को छोडकर (काँटे) बबुल पेड के निचे बैठने जैसी हरकत है । ऐरावण हाथी को छोडकर गधे को खरीदने जैसी बेवकुफी है ।
हीरे को छोडकर कोयले को ग्रहण करने जैसी मूर्खता है ।
कई भवों तक हम यह नादानी, बेवकुफी, गलती, मूर्खता करते ही आये है । पर अब नही ! हमे हमारे अज्ञान को पूर्णविराम करके सम्यग्ज्ञान प्रति लक्ष देना है ।
प्रभु महावीर के निर्वाण को २५०० से भी जादा साल बीत जाने के