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________________ माँ सरस्वती श्री सरस्वती साधना विभाग हे सती ! जहाँ आप किसी भी विषय या प्रस्ताव पर भाष्य की उक्ति एवं युक्तियों द्वारा गहन शास्त्ररूपी सरोवरों की रचना करती हो, वहां उन विषय या प्रस्ताव अथवा उन रचनाओं पर विद्वान पंडितजन, विविधरंगी सुन्दर वाक्यरूपी, स्वर्णरूपी कमलपुष्पों की रचना करते हैं । १०५ वाग् वैभवं विजयते न यथे तरस्या । "ब्राह्मि !'' प्रकाम रचना रूचिरं तथा ते ॥ ताडङ्कयो स्तव गभस्ति रतीन्दु भान्वो । स्तादृक् कुतो ग्रह गणस्य विकाशिनोऽपि ॥३३॥ हे ब्राह्मी ! रचना के साथ अत्यंत मनोहर होने से आपका वाणी वैभव जितना विजयी है, उतना अन्य किसी का भी नहीं है, यह पूर्णतः सत्य है । साथ ही, आपके कर्ण कुंडलों की कांति ने सूर्य एवं चंद्रमा की प्रभा का मानो अतिक्रमण ही कर लिया है अथवा वह उनसे भी अधिक तेजस्वी है । अतः आपके कुंडलों की कांति के बराबर तेज वाली कांति, उदय हुए अन्य ग्रहों के समुदाय की भी कैसे हो सकती है ? कल्याणि ! सोपनिषदः प्रसभं प्रगृह्य । वेदानतीन्द्र जदरो जलधौ जुगोप || भीष्मं विधेर सुर मुग्ररूषाऽपि यस्तं । दुष्टवा भयं भवतिनो भवदाश्रितानाम् ||३४| हे कल्याणी ! शंख नामके दैत्य ने देवराज इन्द्र के भय की भी अवगणना करके अतिक्रोधित हो ब्रह्माजी के रहस्यात्मक ऋग्वेद, यजुर्वेद, अर्थवेद एवं सामवेद को बलपूर्वक प्राप्त करके इन चारों वेदों को समुद्र में छुपा दिया था । ऐसे भयंकर दानव का सामना हो जाने पर भी आपका आश्रय ग्रहण करने वाले आपके सेवक को उस राक्षस से लेशमात्र भी डर नहीं लगता है । गर्जद् घनाघन समान तनू गजेन्द्र | विष्कम्भ कुम्भ परिरम्भ जयाधिरूढः || द्वेष्योऽपि भूप्रसर दश्च पदाति सैन्यो । नाक्रामति क्रम युगाचल संश्रितं ते ||३५|
SR No.032027
Book TitleSamyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshsagarsuri
PublisherDevendrabdhi Prakashan
Publication Year2007
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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