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________________ माँ सरस्वती १०० श्री सरस्वती साधना विभाग सरस्वती के वदनकमलकी शोभा स्पष्टाक्षरं सुरभि सुभ्रु समृद्ध शोभं । जेगीयमान रसिक प्रियपञ्चमेष्टम् || देदीप्यते सुमुखि ! ते वदना रविन्दं । विद्योतय ज्जगद पूर्व शशाङ्कबिम्बम् ||१८| हे सुन्दर वदन वाली माता सरस्वती ! अकारादि ५२ अक्षरों को स्पष्ट रूप से प्रकट करनेवाली माँ, सुगंधमय सुन्दर भावों वाली एवं अच्छी तरह से वृद्धि को प्राप्त आप के मुखमंडल की शोभा, संगीतरस के रसिक को मनोहर पंचमराग के समान ही सर्व प्रिय है एवं जगतको विशेष प्रकार से प्रकाश देने वाले, मृग लंछन से युक्त असाधारण गोल चंद्रमंडल के समान ही आपका वदनकमल भी अतिशय शोभा को प्राप्त हो रहा है । प्राप्नोत्य मुत्र सकला वयव प्रसङ्गि । निष्पत्ति मिन्दु वदने ! शिशिरात्म कत्वम् ।। सिक्तं जगत् त्वदधरा मृत वर्षणेन । कार्यं कियज् जलधरै र्जल भार नम्रैः ||१९| चंद्रमा के समान शीतल मुखवाली हे "मां” ! चंद्रमुखी शारदा ! आपके अधरो से झरते हुए अमृत की वर्षा से सिक्त हुए सारे जगतको शीतलता एवं समृद्धि तथा रस एवं सिद्धि रूपी समस्त अवयवों को संचालित करने वाली शक्ति प्राप्त हो जाती है, तब फिर, जल के भार से नम्र बने हुए श्यामवर्णी मेघ समूह की कोई आवश्यकता ही नही रह जाती । मात स्त्वयी मम मनो रमते मनीषि । मुग्धा गणे न हि तथा नियमाद् भवत्याः || त्वस्मिन्न मेय पण रोचिषि रत्न जातौ । नैवं तु काच शकले किरणा कुलेऽपि ||२०|| माता ! मेरा मन जिस तरह आपश्री के प्रति अनुरागी हुआ है, वैसा आपश्री से हीन वर्ग की चतुर एवं मन मुग्धकारी सुंदरियों के समूह के प्रति, निश्चितरूप से जरा भी आकर्षित नही हो सकता, क्योंकि, मेरे समान रत्न
SR No.032027
Book TitleSamyag Gyanopasna Evam Sarasvati Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshsagarsuri
PublisherDevendrabdhi Prakashan
Publication Year2007
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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