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माँ सरस्वती
श्री सरस्वती साधना विभाग त्वन्नाम मन्त्र मिह भारत सम्भवानां । भक्त्यैति भारति ! विशां जपता मघौघम् ।। सद्यः क्षयं स्थगित भूवलयान्तरिक्षं । सूर्यांशु भिन्न मिव शार्वर मन्धकारम् ।।७।।
हे देवी सरस्वती ! भरतक्षेत्र में जन्म लेने वाले जिन मनुष्योंका अपने पूर्व संचित पाप समूह के कारण भविष्य में मनुष्यलोक एवं स्वर्गलोक अर्थात् ऊर्ध्वगतिमें जाने का निरोध होता है, परन्तु इस लोक में आपके नामरूपी मंत्र का भक्तिपूर्वक जाप जपने वाले मनुष्यों के पाप समूहों का वैसे ही नाश हो जाता है, जैसे कि प्रातः काल में उदय होने वाले सूर्य की किरणों से समस्त भूमंडल एवं आकाश में फैला रात्रि का अंधकार स्वतः ही दूर हो जाता है।
'श्री हर्ष' माघ-वर-भारवि-कालिदास | वाल्मीकि पाणिनि-ममट्ट महा कवीनाम् ।। साम्यं त्वदीय चरणाब्ज समाश्रितोऽयं । .. मुक्ता फल द्युति मुपैति ननूद बिन्दुः ।।८।।
हे सरस्वती ! जिस प्रकार कमल पुष्प का आश्रय ग्रहण करने वाले जल बिन्दु भी निश्चितरूप से मुक्ताफल की आभा प्राप्त कर लेते हैं, वैसे ही हे माता शारदा ! आपके चरणकमल का आश्रय ग्रहण कर लेने के बाद आपका यह चरण सेवक ऐसा मैं भी श्री हर्ष, माध, श्रेष्ठ भारवि, कालिदास, बाल्मिकी, पाणिनी एवं ममट्ट जैसे महाकवियों की तुलना को प्राप्त करता हूँ।
विद्या वशा रसिक मान सलालसानां । चेतांसि यान्ति सुद्धशां धृति मिष्टमूर्ते ! ॥ त्वय्यर्य मत्विषि तथैव नवोदयिन्यां । पद्मा करेषु जलजानि विकास भाञ्जि ।।९।।
हे सुदर्शन मूर्ति वाली माँ सरस्वती ! आपके विद्या विलासिन रूपमें श्रृंगारादिक ज्ञान के अभिलाषी रसिक जन अथवा विद्यारूपी वनिता में स्त्री रस संबंधी ज्ञान के अभिलाषी जन अपने सम्यग्ज्ञान के उपयोग सहित अच्छी द्रष्टी रखने वाले और उसीमें आनंद प्राप्ति की कामना करने वाले आपके