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( ७७ ) दो मौखिक और तीसरे लिखित शास्त्रार्थके कारण अजमेर, अजमेरा और उसकी श्री जेनकुमार सभा चिरकाल तक लोगों को सारी रहेगी और नन्हें लोग सादरकी दूष्टि से देखकर अनुकरण करने योग्य समझते रहेंगे।
अन्तमें हमारी यह परम मङ्गल कामना है कि श्री जैनको सभा जमेरके उत्साही, साक्षर और नव युवक सभासद दिन दूने रात चौगुमाधि द्वान, बुद्धिवान और चारित्रवान होकर जैन धर्मको संची प्रभावना करमेन कटिवद्ध रहैं और उनके अनुकरण करनेकी सामर्थ्य मर्व जैनझुमारों में ही जिससे कि वह जैन धर्म का डड्डा सारे संसारमें बड़े जोर शोरसे बनाकर संघ जीवोंको सच्चे कल्याणकी प्राप्ति करा सकनेमें सर्वथा समर्थ हों।
चन्द्रसेन जैन वैद्य, मन्त्री . . श्री जैनतत्त्व प्रकाशिनी सभा-इटावा।"
परिशिष्ट सास्कर "क"
मौखिक शास्त्रार्थ ___ जो श्रीमान् स्याद्वाद वारिधि वादिगजकेसरी पण्डित गोपालदास जी वरैय्या द्वारा श्रीजैनवत्त्वप्रकाशिनी सभा और आर्यसमाजके सुप्रसिद्ध विद्वान और प्रचारक संन्यासी स्वामी श्रीदर्शनानन्द जी सरस्वती के मध्य "ईश्वर इस सृष्टिका कर्ता है या नहीं? इस विषय पर रविवार. ३० जन १९१२ ईस्त्री को मध्यान्ह के २ से ५ बजे तक स्वाम गोदों को नशियां अजमेर में कई हजार लोगोंके समक्ष सेठ ताराकानाको सनसीराबादके सभापतित्व में हुमा ।
वादिगजकेसरीजी-प्यारे भाइयो ! बड़े दर्ष का समय है कि आज एक विषयका निर्णय होता है। विषय यह है कि ईश्वर हम सृष्टि का कर्ता है या नहीं । सब ही पदार्थों गिर्णय उद्देश्य लक्षण और परीक्षासे होता है। अतः इस विषयमें प्रश्न यह है कि इस सृष्टिके बनाने में ईश्वरका कय क्या ? जब कि कहा जाता है कि परमात्माने भिन्न भिन्न परमाणों को जो कि प्रलयकालमें भिन्न भिन्न स्थानों में वेकार अवस्थामें पड़े हुए थे मिलाकर सूर्य चन्द्रादि रुप बनाया तब यह निश्वया है कि परमात्माने उनको क्रिया में परिणत कि