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कि जोकल इम लिखेंगे उस पर वह आंख मूंदे विश्वास कर लेगी।' .", हम लोगों के तारीख ८ से ही शास्त्रार्थ प्रारम्भ कर देनेकी जिद्द करने का कारण यह था विश्वस्तनीय रीतिसे इस बात का पता हम लोगों को लग गया था कि आर्य समाज एक दिन की बीच में मो. हलत चाहकर मैजिष्टेट को आपस में फिसाद हो जाने से शान्ति भङ्गका अ. न्देशा दिला उसके हुक्म से शास्त्रार्थ वन्द कराना चाहता है। पर हम लोगों को यह बात कदापि इष्ट न थी हम लोग चाहते थे कि शास्त्रार्थ हो ही जाये इस कारण प्रार्यसमाजी समस्त युक्तियों का जो कि उसने तारीख से शास्त्रार्थ प्रारम्भ होने के विषय में दी थीं खण्डन करते हुये हम लोग अपनी बात पर डटे रहे। ___ मार्य समाजका टिकट द्वारा लोगों को भीतर आने देने का प्रवन्ध शास्त्रार्थ के पटिनम होने से अस्वीकार किया गया ओर यह वात प्रार्य समा. जको भी याद में स्वीकृत हुयी।
अपने जिम्मे प्रवन्ध हम लोगों ने प्रार्य समाज के पूर्व ही अविश्वास और असन्तोष प्रगट करने से नहीं लिया।
शोर गुल मचाने की बात बिल्कुल मिथ्या है। निस्सन्देह मार्दी समा. जकी ओर से बात चीत करने को नियत प्रतिनिधि वैशिष्टर साहब के सि. वाय जब और कोई आर्य समाजी सभामें खड़े होकर स्पीच झाकर लोगों को धोखे में डालना चाहता था तप हमारी ओर से चन्द्रसेन जैन वैद्य और फूल चन्द्रमी पांडया सभामें खड़े होकर शान्ति से उन को मिथ्या बातों का प्रतिवाद कर देते थे। सर्व साधारण से यह छिपा नहीं कि अपने प्रेमीहरुटके बार बार रोकने पर भी हमारे समाजी भाई इस भडगह मचाने के काम से वाज नहीं रहते थे।
राय सेठ चान्दमल जी साहव जैनी रईस व भामरेरी मैजिष्ट ट को मार्य समाजियों ने निज प्रयोजन सिद्धयर्थ Cat's Paw (विल्लीका पन्जा) बना. ना चाहा था पर जन सेठ जी साहव ने सब मामला समझ लिया तो अपने 'बार बार मिट्ठनलाल जी और बैरिष्टर साहब के दधाने से दिक्कडीकर उठकर चले गये।
.. चौक में विलौना वगैरह स्वामी दर्शनानन्द जी के पूर्व निश्चित व्याख्या.