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शंका-जब प्रभव्य राशिको रुपान्तर करने पर भी जैन धर्म मुक्ति प्रदान नहीं कर सक्ता और स्वर्गादि मुख ही दे सक्ता है तो ऐसे धम्म से क्या फायदा है जो सबका भला न कर सके। अगर भष्य राशि वाला कोई जि. ज्ञासु इस धर्मसे मुक्ति चाहने की कला करे तो वह उसे कहां प्राप्त हो सकती है ऐसा धर्म जब जिज्ञासु जनोंकाही कल्याण नहीं कर सक्ता तब इसे कोई क्योंकर दृढ़ धर्म समझे। "कीरति भूत सुलभ गति सोई. "सुरसरि सम सब कर हित होई,,. ......
(२) परोपकार-इस शब्द का अर्थ जैन धर्म में क्या है और वह राग में है या राग से वाहिर है।
जैनतत्व प्रकाशनी सभाका चिरपरिचित.
. , शंभुदयाल तिवारी
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तिवारी जी के उपर्युक्त दोनों प्रश्नों के उत्तर. श्रीजैनतत्व प्रकाशिनी सभा की ओरसे निम्नलिखित लेखबद्ध दिये गये थे जिमको भी देवकीनन्दनजीने पढ़कर सुनाये और उनपर नियमानुमार ऐकी व्याख्या की कि सर्व धाधारण उनके भावको भलीभांति समझ गये।
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वन्दे जिनवरम् ।:: श्रीमान् शम्भुदयाल जी शम्र्मा तिवारी के प्रलोके उत्तर । २. १जैनधर्म प्रात्माका स्वभाव है और वह प्रत्येक ही जीवमें अनादि काल से कर्मबश विकृत रहता है । भव्यजीव उसको कहते हैं जो कारण सामग्री मिलने से धर्मको स्वाभाविक अवस्थाको प्राप्त हो मार मोक्षको पा लेता है। परन्तु अभव्य जीवमें एक ऐसी प्रतिवन्धक शक्ति है जो धर्मकी स्वाभाविक अवस्था नहीं होने देती। जैसे जोसी बन्ध्या नहीं है उसके पुरुषसंयोग होने पर सन्तानोत्पत्ति हो सकती है परन्तु वन्यासी के एक ऐसी प्रतिवन्ध शक्ति कि जिससे उस के सन्तानोत्पत्ति नहीं होती। ससकार भव्य और अभव्यका स्वरूप जानना , अभय जीव अपने कर्मों का नाश कर स. बने के कारण कहीं भी कभी मोक्षको प्राप्त नहीं हो सकता ?
२ परोपकारका अर्थ दूसरे को लाभ पहुंचाना है और वह राणरहित या राग सहित दोनों अवस्थानों में होकरके पहुंचाया जा सकता है । यथा मेष