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(१०३ ) . सस्वाभाविक और दूसरा नियम पूर्वक । हर एक वस्तु संयोग युक्त है इस लिये संयोगका देने वाला कर्ता होगा। हर एक फल फन पत्ते मादिक व. है। रही यह वात कि वीतराग होनेपर उस ईश्वरका ऐश्वर्य क्या ? सो यह पहिले ही बतलाया जा चुका है कि जीव द्रव्य अनन्त गुणोंका समुदाय है और वे उसकी संसारावस्थामें अनादि कर्म सम्बन्धके कारण वि. कारी हैं अतः यह सिद्ध ही है वे जीवके गुण होने पर भी जीवके आधि. पल्यसै रहित हैं अर्थात् शुद्ध रूप ( जीवके अनुसार ) न परिणम कर क. र्मानुसार परिणमित हैं। जिस समय कर्मका अभाव हो जाता है जीवके उन्हीं गुखोंका शुद्ध परिणमम होने लगता है अर्थात् वे जीवके आधिपत्यमें ( जैसा चाहिये वैसा ) उसके अनुसार परिणामने लगते हैं अतः वीतराग परमात्माका ऐश्वर्य उसके समस्त नात्मिक गुणोंपर है क्योंकि अन्य द्रव्य का परिणमन अन्य द्रव्यके आधीन कदापि नहीं। इस कारण जगत् वन्य वीतराग परमात्माका ऐश्वर्य उनके अात्मिक गुण हैं।
सकल और निकल दोनों प्रकारके परमात्मा सर्वज्ञ हैं अतः वह श्र. प्रमै ज्ञानकी अपेक्षा सर्वत्र व्यापक होनेसे विष्णु नामसे पुकारे जाते हैं क्योंकि उनका ज्ञान समस्त पदार्थोंको विषय भूत करता है अर्थात् समस्त पदार्थों में व्यापक है । मोक्ष मार्ग और समस्त वस्तुओंके यथार्थ स्वरुपका विधान (प्रगट) करनेसे परमात्माका नाम ब्रह्मा है । समस्त ऐश्वर्य वालों में श्रेष्ठ होनेसे उसी परमात्माका नाम महेश है । यदि ब्रह्मा विष्णु महेश शब्दका यह अर्थ न लेकर यथाक्रम संसारका वनाने वाला, संसारका पालन करनेवाला और संसारका नाश करने वाला लो तो वह भी परमात्मा में भूत नैगम नय (पेन्शन प्राप्त तहसीलदारको तहसीलदार कहनेकी. रीति ) से घटता हैं क्योंकि परमात्माने अपनी पूर्व संसारावस्था में अपना संसार (चतुर्गति परिभ्रमण ) अनादिकालसे स्वयंरचा था अतः वह निज संसारोत्पत्तिसे ब्रह्मा और अपने उस अनादि संसारका निज रागद्वेष विभावोंसे वराबर ( मोक्ष प्राप्त कर लेने तक ) पालन करते रहनेके कारण वि. गु और ( मोक्ष प्राप्त कर लेने पर ) उसका नाशकर देनेसे महेश नाम वाले हैं। इत्यादि अनेक रीतियोंसे यह ही नहीं वरन् परमात्मा वापत समस्त नाम सिद्ध किये जा सकते हैं।
(प्रकाशक ) ...