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(८) न हो और परिणमन शील हो इसका एक उदाहरण दो और अब भापका वह कहना कि 'जब ईश्वरको अखण्ड बतलाते हो तो जन्य पदार्थके विषयमें मांगे हुए उदाहरणमें उसका उदाहरण विषम हैं' क्या अभिप्राय रखता है। कृपया सम्हल कर हमारे दिये हुए दोषोंका निवारण और प्रश्न का उत्तर दीजिये ॥ . . स्वामी जी-अन्दरूनी क्रिया चक्करदार होती है उसमें दिशा भेद नहीं दृष्टान्तसे अपने कथनको सिद्ध कीजिये। घोड़ा हाथी चोटी आदिका उदा. हरण विषम है। घोड़ा भादि शरीर बनता है न कि जीव । एक पुरुष जो महलमें वैठा हुआ है उसे यदि जेलखाने में विठला दिया जाय तो उसकी अवस्थामें भेद भा जायगा न कि उसके जीवमें। शरीर और जीव एक नहीं है। शरीर मकान है। मकान बदलता है। उसमें बैठनेवाला नहीं । एक पुरुष जो बड़े भारी कमरे में बैठा हुआ है यदि उसको एक कोठरी में बैठा दिया जाय तो जीवकी शकल बदल गयी यह नहीं कहा जा सकता। हाथी पोहा शरीर में परिणमन है। किसी वस्तुको शकल आकाशके निकल जानेसे बदलती है। गेंदको दवाया उसके भीतरसे आकाश निकल गया अर्थात् कुछ कम होनेसे खण्डन होता है। जीवमें से कुछ कम नहीं होता श्रतएव उसका खण्डन नहीं प्रतःजीव परिणामी नहीं । सूक्ष्म में स्थूलके गुण नहीं प्रासकते । लोहे में अग्नि पाती है। अग्निमें लोहा नहीं पाता। आगमें पानीको सर्दी नहीं पा सकती, परन्तु पानी में प्रागकी गर्मी आती है । इस लिये सूक्ष्म पदार्थमें स्थलके गुण नहीं पा सकते। जीव और परमात्मा सूक्ष्म है । चेतन सबसे सूक्ष्म है इस लिये उसमें रूप नहीं । जब रूप नहीं तो रूपान्तर कैसा ?
वादिगजकेसरी जी-अन्दरूनी क्रिया को चाहे श्राप चक्करदार मानिये या किसी दूसरी ही भांति की, पर जश कि प्रलयकाल में कारण अबस्था को प्राप्त भिन्न भिन्न परमाणु एक ही स्थान पर नहीं बरन आपके सर्वत्र व्यापक ईश्वर में फैले हुए हैं तो उनमें परस्पर भापको दिशा भेद अवश्य मानना पडेगा। क्रिया को चक्करदार ही मान लीजिये पर जब कि आपके एक रस सर्व व्यापी ईश्वर के प्रत्येक प्रदेश से एक सी ही क्रिया हो रही है तब कहिये कि परमाणुओं की क्या दशा होगी क्या वे सब और से एकसी ही शक्ति र. खने वाले चुम्बक पत्थरों से खींचे हुये लोहे के समान अपने स्थानसे हिल स. केंगे ? जब नहीं तो आपको सृष्टि कैसे बनेगी क्योंकि परमाणु परस्पर मिलही