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अथ दशमध्वजपूजाप्रारम्भः
दूहा.
कनक रजत ध्वज दंडमय । पंच वरण ध्वजपुर मृदु समिर लयके गगन । देखत अरि वसु दूर ॥१॥ . ढाल दशमी.
ख्यालकी चालमें. सरने आया की लजा राख ल्यो सद्गुरुजी मारा | ए आंकडी । सिंधुदेश मुलतान नगरमें । मुगल बडे उत्पाती। जाको देखे तिलक लगाया। जव वन आन मिटातेजी ॥ स० ॥१॥ बहुत उपद्रव संघकुं दीना। दुःखी हुए नर नारी। मिलकर संघ गुरुपेआया। विनति करे अति भारीजी।स०॥२॥ लाहोर नगर साहका लडका। मृतक हुवा उस बारी सुनकर नामें गुरुपे आया। लास धरी इणवारी जी ॥स० ॥३॥ दृष्टि मात्रसें तुरत जिवाया। उठा पुत्र तत्काल। सोगन लीना मदिरा मांसका। पुत सहित पातसाहजी ॥ स० ॥४॥ रोग उपद्रव तुरत भंजाया। यवन दुःख सब रोका। श्री संघ साथे आये कानन । नदी तीर तप कीघा जी ॥ सः ॥५॥