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रोग अति भारी । ता पर कोप्या देव विकारी । दुःखि भये सबहि नर नारी । भागके जान बचाने वाले ॥ धन० ॥ २ ॥ सुनके सिद्धसूरिका नाम । चलके आये संघ तमाम | बिनति वंदन करे अति गाम । भवदधि पार लगाने वाले ॥ धन० ॥ ३ ॥ सुगुरु कहे संघ क्युं धरावे। इति उपद्रव तुरत नसावे । चइत्ता भार पाठ बतावे । तत्क्षण फंद हटाने वाले ॥ धन० ॥४॥ सद्गुरु वासक्षेप जिहां डाले । रोग उपद्रव तुरत पुलावे । खुस हो के श्रीसंघ घर जावै । गुरुसें नेह बढानें वाले ॥ धन० ॥ ५ ॥ पुनम दिवसे संथारा करके । उपजे सुरपुर चोथे विचरके। संघ करे भक्ति बहु घरकें । सुभकुं दरस दिखाने वाले ॥ धन० ॥ ६ ॥
॥ काव्यम् ॥
सकलभुवनलज्जावारणं सद्दशाकं मद्गुरुचिरसुगन्धं कुन्दचन्द्रप्रकाशम् विमलशुचि सुधौतं प्रांशु दीर्घं सुवर्ण वसनमिदममौलं सुन्दरं ते ददामि ॥ १ ॥
वस्त्रं निर्वपामि ते स्वाहा.
॥ इति नवमी वस्त्रपूजा समाप्ता ॥
ँ हाँ श्रीँ
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