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इस प्रश्नका उत्तर देने से पहले मुझे तीसरे प्रश्नपर विचार कर लेनेकी प्रथम आवश्यकता है.
महानुभावो ! हमने यह कोई नवीन आडंबर खड़ा नहीं किया. इसे सभा कहो, सम्मेलन कहो इकट्ठे होना कहो या वर्तमानकाल के अनुसार ( जमाना हाल के मुताबिक ) कॉन्फ्रेंन्स कहो ! मतलब सबका एक ही है. ऐसी ऐसी सभायें या सम्मेलन प्रथमभी हुआ करतेथे यह बात इतिहासों से बखूबी मालूम हो सकती है. हमारे पूर्वजोंने इस संमेलन से क्या क्या फायदे उठाये हैं इस बातकोभी हमें इतिहास अछी तरह बतला रहा है. कालचक्रके प्रभाव ( जमाने की गर्दश) से बीचमें लुप्तप्रायः हुए हुए उन्नति कर इस उत्तम मार्गको नवीन समझना एक भूल है. पुरातन मुनि कर्त्तव्यको ही फिरसे उत्तेजित करनेके लिये यह उद्योग है.
अच्छा ! अब यह सम्मेलन किस लिये हुआ है वह मैं आपको बतलाता हूं. ऐसे सम्मेलन करनेसे अपने मुनियोंका दूर दूर देशोंसे आकर एक स्थानमें मिलना इससे दर्शनका लाभ, और जो एक दूसरेकी परस्पर पहिचान नहीं है वहभी हो, और परस्पर आपसमें प्रीतिभावका होना. उससे जो धर्म संबंधी कार्य हों उनमें एक दूसरेकी मददका मिलना और अपने इस सम्मेलनको देख कर अन्यभी इस प्रकार से धर्मोन्नति के लिये सम्मेलन करना सीखें जिससे दिनपरदिन शाशनकी उन्नति हो. इसके अलावा एक महत्वका कारण यहभी है कि, अपने साधु तो फिरते राम होते हैं. एक स्थान में सिवाय चतुर्मासके रहतेही नहीं ! शेषाकाल विहारमें फिरते