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प्रस्ताव तीसरा श्रीसंघ समिति की स्थापना के बारे में जैनधर्सने हमेशां आचारशुद्धि-अर्थात् जीवनशुद्धि और , व्यवहारशुद्धि-पर भार दिया है; और जब जब श्रमणसमुदाय में या चतुर्विध संघ के किसी भी अंग में किसी प्रकार की शिथिलता प्रविष्ट होती मालूम हुई है, तब तब हमारे आचार्य महाराजों आदि समर्थ पूज्य पुरुषों ने अपने प्रबल पुरुषार्थ से उसे दूर कर संघशुद्धि और धर्मशुद्धि को बनाये रखा है। समय समय पर किये गये इस प्रकार के पुरुषार्थ से ही जैनधर्म, जैन संघ और जैन संस्कृति का गौरव आज तक टिका हुआ है। ___श्री अखिल-भारतीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रमणोपासक श्रीसंघ का यह सम्मेलन दृढता और श्रद्धापूर्वक मानता है कि श्रमणसमुदाय में कहीं कहीं घुसी हुई शिथिलता का विचार करना, उस शिथिलता को दूर करने के उपायों को खोजना और उस पर अमल करना, यह केवल श्रमणसमुदाय का अर्थात् आचार्य महाराजों आदि साधुसमुदाय का ही कार्य है।
पिछले तीन वर्षों में हमारे संघ के कुछ अग्रणी सद्गृहस्थोंने इस चिन्ताजनक परिस्थिति के विषय में और उसे दूर करने के उपायों के विषय में अनेक पूज्य आचार्य महाराजों से एवं भिन्न भिन्न शहरों के जैन अग्रणियों से काफी विचार-विमर्श किया है। इस विचार-विमर्श के समय सबने यह हार्दिक भावना व्यक्त की है कि इस संबन्ध में अवश्य कुछ उपाय किये जाने चाहिये । और इस . भावना को कुछ कार्यान्वित करने के पवित्र उद्देश्य से ही यह सम्मेलन बुलाया गया है।
यह सम्मेलन दृढतापूर्वक मानता है कि इस शिथिलता को दूर करने के लिए जैन संघ द्वारा अविलंब उपाय किये जाने चाहिये; साथ ही जैन संघ के संगठन में जो क्षतियाँ आ गई हैं और