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________________ श्रावकसंघ में भी जो त्रुटियाँ आ गई हैं, उन्हें दूर करने का प्रयत्न करना ही चाहिये । परिस्थिति और समय को पहचान कर पूज्य आचार्यमहाराज आदि साधुसंघ स्वयं यह कार्य करे यही सच्चा मार्ग है; फिर भी, एक या दूसरे कारणों से, ऐसा न हो सके तो आखिरकार परिस्थिति की अनिवार्यता को पहचान कर, अपनी पूर्ण अनिच्छा होते हुए भी, पूर्ण संकोच के साथ, श्रावकसंघ ने इस कार्य की जिम्बेदारी अपने ऊपर लेने की तत्परता दिखानी ही चाहिये । इसी लिए यह सम्मेलन बुलाया गया है, और उसके उपायों पर विचार करना आवश्यक और उचित माना गया है । उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए उचित कदम उठाने के लिए 'श्री अखिल भारतीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघसमिति " की इस प्रस्ताव से स्थापना की जाती है । 66 इस समिति की और उसके कार्य की सामान्य रूपरेखा निम्न प्रकार है -: 6. ( 9 ) नाम : इस समिति का नाम श्री अखिल भारतीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ समिति ” रहेगा । इसका संक्षिप्त नाम श्रीसंघ समिति अथवा समिति " रहेगा । 66 26 ܕܕ (२) सदस्य : मुख्य मुख्य शहरों और गावों के श्रीसंघ द्वारा निर्धारित प्रतिनिधि एवं विशिष्ट प्रभावशाली जैन अग्रणी, जिन्हों की इस समय तथा भविष्य में नियुक्ति की जाय, इस समिति के सदस्य रहेंगे । (३) कार्यकारिणी समिति : श्रीसंघसमिति के संचालन के लिए निम्न सात सदस्यों की कार्यकारिणी समिति निश्चित की जाती है । कार्यकारिणी समिति में जो जगह खाली होगी उसके स्थान की पूर्ति कार्यकारिणी समिति के शेष सदस्य करेंगे :
SR No.032018
Book TitleShwetambar Murtipuja Sangh Sammelan Prastav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Jain Shwetambar Murtipujak Shree Sangh Samiti
PublisherAkhil Bharatiya Jain Shwetambar Murtipujak Shree Sangh Samiti
Publication Year1963
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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