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न्यायरत्नदर्पण. कल्याणिकपर्वके व्रतनियममें अधिकमहिना गिनतीमें क्यों नही लिया ? और (१२०) दिनका चौमासा कल्पसूत्र और समवायांगसूत्रके पाठमें क्यौं फरमाया ? तीर्थंकर महावीरस्वामी महाराज भी अतीतकालमें होये हुवे अनंते तीर्थंकरोमें ही है, कुछ जुदे तो है नहीं फिर ऊनोने एकसोपचास दिनका चौमासा क्यों नहीं फरमाया ? इस बातको सौचो ! अगर अनंते तीर्थकरोमें-महावीरस्वामीको गिनते हो तो उनका फरमाना मंजुर करो, यातो कहो ! हम अकेले कल्पसूत्रके पाठपरही चलते है. समवायांगसूत्रके पाठपर अमल नहीं करते, या कहो ! दोनों पाठोपर अमल करते है, अगर दोनोपाठोपर अमलकरोगे तो साबीत होजायगा. चातुर्मासिक, वार्षिक और कल्याणिपर्वके व्रत नियमकी अपेक्षा अधिक महिना गिनतीमें नही लिया जाता, मेरा कहना पहले भी यही था, और अबभी यही है. ____ आगे इसी तीसरे सवालमें जहोरी दलिपसिंहजीने लिखा है कि तीर्थंकरोके कल्याणिक मासवृद्धिसे प्रथम या दुसरे महिनेके पहिले या दुसरे पक्षमें जिसतिथिको हुवे हो ऊसी माफिक माने है. - (जवाब) इस लेखका मतलब यह निकला कि अधिक महिनेमे पनरांदिन पहले महिनेके छोडना, और पनरादिन दुसरे महिनेके छोडना, फिर बात क्या हुई ? बात यही हुई कि एक महिना तो बीचमे छुटही गया, मेरा जो कुछ कहना था वही बात आगई. दरअसल ! आपके अधिक महिनेका भेद यहां खुल गया, निशीथचूर्णि-दशवैकालिकहवृत्ति और जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिका पाठ कहां गया ? इधर उधर फिरकर ऊसी बातपर आये, जो शांतिविजयजी कहते थे,-इस लेखसे साबीत होगया कि आप भी कल्याणिकपर्वके व्रतनियममें अधिकमहिना गिनतीमें नही लेते. . - फिर इसी तीसरे सवालमें जहोरी दलिपसिंहजीने लिखा है