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न्यायरत्नदर्पण. लिये पाठ तारिख (२७) जुलाई सन (१९१३)के लेखमें दे दिया है आप लोगोकी तर्फसें मय शास्त्रसबुतके पाठ जाहिर होते रहे तो बदलेके पाठ मेरी तर्फसे भी जाहिर होते रहेगें, खरतरगछवालोकी तर्फसे जो शुद्ध समाचारी किताब छपी हुई है, उसके पृष्ट (१४६) पर महाराजश्री हरिभद्र सूरिकृत-तत्वविचारसार ग्रंथकी गाथा "भवइ जहिं तिहि हाणि"-तथा ऊमास्वातिजी रचित आचारवल्लभ ग्रंथकी गाथा “तिहि पडणे पुव्वतिहि "-वगेरा दिइ है, आंगे ऊंसी शुद्ध समाचारी किताबके पृष्ट (१५०) पर वही महाराजश्री हरिभद्र सूरिजी कृत तत्व तरंगिणी ग्रंथकी गाथा “तिहि बुढीए पुव्वा "-दिइ है यह गाथा उपर लिखे ग्रंथोके कौनकौनसे अधिकारमें है, इसका मयसबुतके कोई पता लिखे, निहायत उमदाबात हो, क्योंकि दोनोतर्फसे पाठ जाहिर होते रहे तो पढनेवालेकोंभी फायदा पहुचे.
(सवाल दुसरा )-आप अधिक मासको कालपुरुषकी चोटी कहकर गिनतीमें लेनेका निषेध करते है, परंतु यहां-मुनिश्री मणिसागरजीके पासमें निशीथचूर्णि हाथकी लिखीके प्रथम उदेशके पृष्ट (२१) में तथा दशवैकालिकहद्वृत्ति छपी हुई किपृष्ट (६४१)में पहेली नरककेश्रीमंत नामा नरकावासेकी पृथवीको तथा हरेक मंदिरो-वा-पर्वतोके शिखरोकों और मेरुके उपरवाले (४०) योजनके भागको और सर्वार्थसिद्ध विमानके उपर सिद्धशिला ईन सबोको क्षेत्रचूला कही है. इसी माफिक बारां मासोके उपर अधिक मासकी तथा रितुमासकी अपेक्षासे साठ वर्समें जो एक वर्स बढे ऊसको और चौथे आरेके अंतके पांचमे छठे आरेकों कालचूला कहकर सर्वकालमानकों गिनतीमें लिया है, जैसे नवकारमंत्रके पांचपदोके (३५) अक्षरोके उपर चार चूलिकाके. (३३) अक्षरोकों सामील करके (६८) अक्षरोके नव पदोकों नव