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अल्पछटां जावे गोचरी, कल्पसूत्रमें जाणजी । वर्षतां बीलकुल नहि जावे दशविकालीक वाणीजी ॥ मू॥ १७॥ भगवती में अणसण कधो, कदाचित करे आहारजी । बीजो सुत्रत्रत भंग को, लागे दोष अपारजी ||५||१८ ॥ पनवणामें स्त्री वेदका, स्थितिका पंच आदेशजी । सर्वज्ञका मतमे किम चाले, पीण छे सुत्रनी रेसजी ॥ मू॥ १९ ॥ राजपिंड साधु नहि लेवे, ठाणायांगमें जाणजी । देवकी वहराया छे साधुने, अन्तगडकी वाणी जी || ||२०|| पंचवीश जोजन उपद्रवनहि होवे, समवायांग अतीसय अधीकारजी अभंग सेणीदी मुली चडीया, विपाक सुत्र मुजारजी | मू||२१| दोय साधु समोसरण मांये, बाल्या गोसालो आणजी । लोहांण हुव भगवंत के, आ भगवतीनी वाणीजी ॥ मू॥ २२ ॥ समवायांगमें श्रावक केरा, चैस हुडीमें होयजी । उपासक सुत्रमें देखो, पाठ न दीसे कोयजी ॥ मु॥२३॥ अल्प आयुषो ठाणायंगजी, देदो खीलो आहारजी । अल्प पापने बहु निर्जरा, भगवती सुत्र मंझारजी ||मू ॥ २४॥ पंच महानदी नहीं उतरणी, ठाणायंगरो लेखजी । मार्ग जातां नदी उतरे, आचारांग लो देखजी || ||२५|| चोमासामें विहार नहि करणो, बृहत् कल्पकी साखजी । पंचमें ठाणे विहार करणा को, वितराग गया भाखीजी ॥मू॥ २६ त्रिविधे २ हिंसा नहि करणी, आचारंग दसवि कालजी । नंदि उतरे नावे बेठे, आचारंगमें भालजी || ||२७|| कल्पसूत्र साधु, वर साले विगे नहि लेवे वारमवारजी । सुयगडांगमें निषेध कीनो, नहि लेवे अणगारजी ||||२८||
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