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मनुष्य तिर्यचको काल वेक्र, अंतर्मुहूर्त पांचमे अंगजी । भीभमूहूर्त च्चार बताया, जोवो तीजे उपांगजी ॥॥७७॥ जगन्न अरादी रत्न त्रीयकौ, नव करे सत अठजी । नर देवे उत्कृष्टो रेवे, अद्ध पुदगल मठजी || मु॥७८॥ भगवती में निद्रा लेतो, सात आठ बंदे कर्मजी । तीजा पहोरे निद्रा लेणी, उत्तराध्ययनमें मर्मजी ॥॥ ७९ ॥ असंघेणी का नेरीया, जोवो तीजे उपांगजी । उत्तराध्ययन सुयगडांग देखो, मांस खपावे करे तंगजी ||८० ॥ दिव्य संधेणी क्या देवता, लेवो पन्नवणा देखजी । असंघेणी जाणो देवता, जीवाभिगम को लेखजी ॥ ॥८१॥ भगवती असन्नी मनुष्यको, अडतालीस मूहूर्त अवठीया कालजी चोवीस मोहुर्तको, वीहरो, बतायो, पन्नवणामें नालजी ||८२ ब्रह्म कल्पविमण ठाणायंग, रक्त स्वयंम नीलवर्ण जाणजी । रक्त पेत सुकल बतायौ, जीवाभिगम पिछाणजी ||८३ समवायांग भगवती मांडे, शक्र स्तवन अधिकारजी दोनु पाठ फर्कज दीसे, पंचागी लो धारजी ॥॥८४॥ पांचसो तीस भेद बताया, पुद्गल पन्नवणा लेखजी । चारसो व्यासी दाख्या जीनंबर, उत्तराध्ययन लो देखजी | मु॥८५॥ जघन कलमेषी, सुधर्म, जावे, पन्नवणा की वायजी । भगवती सुत्रमे देखो, भूवन पतीमें जायजी || ||८६॥ सारण करतो में नहि जाणुं, कल्प सूत्र परमाणजी । आचारंगमें कहेमे जाणुं, आ वीर जीणदकी बाणजी ॥ ॥८७॥ पहेला देवने पछे मनुष्यने, धर्म कह्यो जगनाथजी । अछेरामे वाणी निष्फळ, मेलो मुलके साथजी ॥८८॥