________________
(61)
नव जोजन धाणेंद्रि विषे, पन्नवणामे जाणजी । च्यार पांचसो जोजन दाखी, दुजे उपांग परमाणजी ||६५| भगवतीमें पलंकालको, कुवा तणो को मानजी । तेथी फर्क घणेरी दिसे, अणुयोग द्वारको ज्ञानजी || || ६६ ॥ असुर अवधि ज्ञान जग नथी, पचीस जोजन चोथे उपांगजी । अंगुल भाग असंख्यो दाख्यो, देव सुधर्मा चंगजी ॥४॥६७॥ बादर ते मनुष्य लोकमे, पन्नवणा पेछाणजी । देखो अनि कही नरकमें उतराध्ययन ओगणीसमे जाणजी | मु|६८ | शोरीपुरमें नेमीनाथजी, कथा, उत्तराध्ययन मजारजी । दिक्षा लेतो कहि द्वारका, मुलथी काडो सारजी || ||६९ || शौरीपुर पूर्वमें जाणो, द्वारका पश्चिम दिस जाणजी । राम कृश्न वंदन कर चाल्या, आ जीनवरकी वाणजी | मु|७० सात कुलधरका नाम बताया, ठाणांयंग ठाणौ सातजी । दश कुलधरक कह्या दशमे ठाणे, मुलथी मेलौ वातजी ॥ म्॥ ७१ ॥ तिहीज आवती उसपणी जाणे, कुलधरको अधिकारजी । सातमे दशमे ठाणो देखो, उपरवत् विचारजी ॥॥७२॥ सुधर्म इशान कह्यो बरोवर, जिवाभिगम जोयजी । भगवती सूत्रमे देखो, इशान उंचो होयजी ॥ ॥ ७३ ॥ तिछ गति कही असुरकी, नंदीश्वर दीप मजारजी । राजधानी असंख्या दीपे, भगवती अंग विचारजी ॥ ॥ ७४ ॥ माहावेदना, समद्रष्टी, नेरीयां, पहेले सतके थायजी ।
सतक अठारे उदेशो पांचमो, अल्प वेदना कहेवायजी ।।७५ बारमो तीर्थंकर को कृश्नने, अंतगड अधीकारजी जिनवर होसी तेरमो देखो, समवायांग सूत्र मोजारजी।। मु७६॥