________________
३४
परिशिष्ट पर्व.
[दूसरा बड़े भाईका वचन मिथ्या होजायगा इसलिए अब तो हाँ कहनाही योग्य है, यह विचार कर 'भघदेव ने शीघ्रही गुरुमहाराजके समक्ष हाँ कहदिया। आचार्य महाराजनेभी 'भवदेव' को विधिपूर्वक दीक्षा देकर दो साधुओंके साथ अन्यत्र विहार करा दिया । इधर 'भवदेव' के घर 'भवदेव' के न आनेपर खलबलिसी मचने लगी
और कितनेएक आदमी उसे ढूंढने निकल पड़े । 'भवदत्त' के पास आकर बोले कि महाराज ! 'भवदेव' आपके साथ आयाथा . इस बातकी हमें बड़ी खुशी है परंतु वह अभीतकशी घरपर नहीं आया । इसलिए हम लोग बड़े घभराते हैं और विरहिणी चक्रवाकीके समान उसकी नवोढा वधूभी बड़ीही दुखी होरही है उसके नेत्रोंसे जलधारा बंद नहीं होती, हम स्वप्नमेंभी इस बातकी संभावना नहीं करते कि हमें पूछे विना 'भवदेव' कहीं जाय परंतु इस वक्त न मालूम वह कहां गया और कैसे गया । . इस समय हम ‘भवदेव' को न देखते हुए सबके सबही जीते हुएभी मृतक समान है अत एव भगवन् अपने छोटे भाईको बताकर हमें जीवित करो । यह सुनकर 'भवदत्तर्षि' ने मिताक्षरोंमें उत्तर दिया कि भाई यहांसे तो आतेही पीछे चला गया, उसवक्त भाईके हितकी आकांक्षासे 'भवदत्त' मुनिको मिथ्याभी बोलना पड़ा मगर मुनिराजका आशय मिथ्या बोलनेका न था उनका आशय एकान्त भाईका हित करनेमेही था अत एव वह उनका मिथ्या बोलना कुछ गिनतीमें नहीं, 'भवदत्त' मुनिके उत्तरको सुनकर दीन मुखवाले होकर परस्पर यह कहते हुए सबही जने पीछे लौट गये कि भाई जलदी चलो शायद 'भवदेव' दूसरे रास्तेसे गया हो। इधर भाईकी दाक्षण्यतासे दीक्षा ग्रहण करके 'भवदेव' अपने भाईकेही साथ रहता है परंतु 'भव