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परिच्छेद.] भवदत्त और भयदेव.
३१ नजर आई 'नागदत्त' की पुत्री 'नागिला' के साथ 'भवदेव' का विवाहोत्सव हो रहा है और सबही स्वजन संबंधि विवाहोत्सवमें. लगे हुए हैं । 'भवदत्त' को दूरसे आते हुए देखकर कितने एक अन्य आदमियों ने कहा कि देखो आनंदमें आनंद, जो अपने छोटे भाईके विवाहोत्सवमें 'भवदत्त' मुनिभी आ पधारे, यों कहकर प्रासुक पानीसे 'भवदत्त' के चरणोंका प्रक्षालन किया और उस पानीको तीर्थका जल समझकर सब स्वजन संबंधियोंने अपने मस्तकपर लगाया और सब जनोंने 'भवदत्त' मुनिके चरणोंको अपने मस्तकसे स्पर्श करके भक्तिपूर्वक नमस्कार किया। 'भवदत्त' ने धर्मलाभपूर्वक कहा कि हे भाइयो! तुम्हें. तो विवाहके कार्योंसे फुरसत नहीं है हमभी अन्यत्र जाते हैं यों कहकर जब 'भवदत्त' वहांसे चल पड़ा तब सब स्वजनोंने उन्हें आहारकी विज्ञप्ति की ‘भवदत्त' नेभी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव देखकर उनकी विनति मंजूर कर ली और वहांसे एषणीय याने कल्पनीय आहार अपने पात्रमें बोर लिया । उस समय 'भवदेव' बहुतसी स्त्रियोंके साथ मकानके अंदर बैठा हुआ अपने कुलाचारके अनुसार अपनी स्त्री नागिलाका शृंगार कर रहाथा । 'भवदेव' ने मोगरेके पुष्पोंसे ग्रथितमालाओंसे 'नागिला' की बेणीको बाँधकर तथा 'नागिला' के कपोलस्थलोंपर मानो कामदेवकी विजय प्रशस्तिके समानही कस्तूरीके रंगसे पत्र वल्लरी चित्रके अभी 'नागिला' के कुचोंका याने स्तनोंका मंडन करही रहाथा कि इतनेमेंही किसीसे 'भवदत्त' का आगमन सुन पाया, परमस्नेही बड़े भाईका आना सुनकर उसके दर्शनोंकी उत्सुकतासे ऐसा हर्षित हुआ कि जैसा जूवमें जीत पाकर जूवारी होता है और आंधी शृंगारी हुई अपनी स्त्रीको छोड़कर