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परिच्छेद.] प्रसन्नचंद्र राजर्षि और वल्कलचीरी. इस अपने पुत्रका पालन करना । धारणी बोली हे स्वामिन् ,मैं तो
आपके विना क्षणमात्रभी ठहरनेको समर्थ नहीं क्योंकि पतिव्रता स्त्रियोंका यह मुख्य कर्तव्य है कि चाहे दुःख हो या सुख परंतु अपने पतिकी सेवामें तत्पर रहना अत एव मैं तो आपकी छायाके समान आपके साथही चलेंगी, आप इस बालकको राजगदी दे दीजिये, यह प्रसन्नचंद्र बालक वनके वृक्षोंके समान आपही अपने भाग्यसे परंवस्त होजायगा, मुझे आपके विना पुत्रसे क्या ? मेरे तो आपही सर्वस्व हैं । सोमचंद्रने संसारसे विरक्त होकर उस अपने बाल पुत्र प्रसन्नचंद्रको राजगद्दीपर बैठाके अपनी प्राणप्यारी पियाके साथही तापसोंके आश्रममें जाकर सं. न्यस्त धारण कर लिया और दुष्तप तपस्या करने लगा, पारनेमें केवल शुष्क फलफूलादि ग्रहण करता है परंतु अपनी प्रिया "धारणी" के लिए तो प्रेमतंतुओंसे बँधा हुआ जंगलोंमेंसे पक्के हुए और मधुर मधुर फल लाता है । धारणीभी अपने पति सोमचंद्रकी भक्तिमें तत्पर हुई हुई उसके लिए रातके समय कोमल कोमल तृणोंकी शय्या विछा देती और दिनके समय एरंडोंका तेल निकालकर रातको दीपक जला देती है जंगलमेंसे गायका गोबर लाकर आश्रमको लीपती है, इसतरह पतिसेवा करते हुए कुछ समय व्यतीत होगया सोमचंद्रभी दुष्तप तपस्या करते हुए इस दरजेपर पहुँच गया कि जंगलमें रहनेवाले क्रूर जातिके व्याघ्रादि पशुभी उसके तपसे शान्त होगये, हरिणादि पशु तो उसके पास आकर बैठ जाते हैं, ऐसे उग्र तपको करते हुए सोमचंद्र ताफ्सको कुछ समय व्यतीत होनेपर पूर्व अवस्थाके संयोगसे जो "धारणी" को गर्भ रहा हुआ था वह अब बढ़ने लगा, और फलफूलादिका आहार करनेवाली सुकुमार विचारी "धा