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परिशिष्ट पर्व. दिशा. दनादो 'यक्ष' ने कहा-अच्छा भद्रे! तथास्तु यह कहकर 'यक्षराज' तो तिरोहित होगये, 'बुद्धि' की शीघ्रही दोनों आँखें नष्ट हो' गई, क्योंकि देवताओंका वचन कभी व्यर्थ नहीं जाता । जिस प्रकार उस वृद्धा 'बुद्धि' ने प्रथम प्राप्त की हुई संपदासे न तृप्त होकर अति लोभमें तत्पर होकर अपने आपको नष्ट कर लिया था उसी तरह हे स्वामिन् ! आप भी पूर्वकृत सुकृतके प्रभावसे प्राप्त की हुई संपदासे अतृप्त होकर अधिक सुख संपदाकी इच्छा करते हुए उसीके प्रतिरूप बनोगे।
___ 'जंबूकुमार' बोला-प्रिये ! मैं जातिमान् अश्वके समान उत्पथ (उन्मार्ग) गामी नहीं हूँ।