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बंधाधिकार
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बहुविध बहुत उपकरण से उपघात करते पुरुष को। परमार्थ से चिन्तन करो रजबंध क्यों कर ना हुआ ?| चिकनाई ही रजबंध का कारण कहा जिनराज ने। पर कायचेष्टादिक नहीं यह जान लो परमार्थ से ।। बहुभाँति चेष्टारत तथा रागादि ना करते हुए।
बस कर्मरज से लिप्त होते नहीं जग में विज्ञजन ॥ जिसप्रकार वही पुरुष सभीप्रकार के तेल आदि स्निग्ध पदार्थों के दूर किये जाने पर बहुत धूलिवाले स्थान में शस्त्रों के द्वारा व्यायाम करता है
और ताल, तमाल, केला, बाँस और अशोक आदि वृक्षों को छेदता है, भेदता है; सचित्त-अचित्त द्रव्यों का उपघात करता है।
इसप्रकार नानाप्रकार के करणों द्वारा उपघात करते हुए उस पुरुष को धूलि का बंध वस्तुत: किसकारण से नहीं होता - यह निश्चय से विचार करो।
निश्चय से यह बात जानना चाहिए कि उसके जो बंध होता था, वह तेल आदि चिकनाई के कारण होता था, अन्य कायचेष्टादि कारणों से नहीं। इसप्रकार बहुतप्रकार के योगों में वर्तता हुआ सम्यग्दृष्टि उपयोग में रागादि को न करता हुआ कर्मरज से लिप्त नहीं होता।
(२४७ से २५२) जो मण्णदि हिंसामि य हिंसिज्जामि य परेहिं सत्तेहिं । सो मूढो अण्णाणी णाणी एत्तो दु विवरीदो। आउक्खयेण मरणं जीवाणं जिणवरेहिं पण्णत्तं । आउं ण हरेसि तुमं कह ते मरणं कदं तेसिं ।। आउक्खयेण मरणं जीवाणं जिणवरेहिं पण्णत्तं । आउं ण हरंति तुहं कह ते मरणं कदं तेहिं।। जो मण्णदि जीवेमि य जीविज्जामि य परेहिं सत्तेहिं। सो मूढो अण्णाणी णाणी एत्तो दु विवरीदो।।