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-गाथा समयसार निःशंक हों सदृष्टि बस इसलिए ही निर्भय रहें।
वे सप्त भय से मुक्त हैं इसलिए ही निःशंक हैं। सम्यग्दृष्टि जीव नि:शंक होते हैं, इसीकारण निर्भय भी होते हैं । चूँकि वे सप्त भयों से रहित होते हैं; इसलिए निःशंक होते हैं।
(२२९) जो चत्तारि वि पाए छिंददि ते कम्मबंधमोहकरे। सो णिस्संको चेदा सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो।
जो कर्मबंधन मोह कर्ता चार पाये छेदते। वे आतमा निःशंक सम्यग्दृष्टि हैं - यह जानना ।। जो आत्मा कर्मबंध संबंधी मोह करनेवाले मिथ्यात्वादि भावरूप चारों पादों कोछेदता है; उसको नि:शंक अंग का धारी सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए।
(२३०) जोदुण करेदि कंखं कम्मफलेसुतह सव्वधम्मसु। सो णिक्कंखो चेदा सम्मादिट्टी मुणेदव्वो। सब धर्म एवं कर्मफल की ना करें आकांक्षा।
वे आतमा नि:कांक्ष सम्यग्दृष्टि हैं - यह जानना ।। जोचेतयिताआत्मा कर्मों के फलों के प्रति और सर्वधर्मों के प्रतिकांक्षा नहीं करता; उसको नि:कांक्षित अंग का धारी सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए।
(२३१-२३२) जो ण करेदि दुगुंछं चेदा सव्वेसिमेव धम्माणं । सो खलु णिव्विदिगिच्छो सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो। जो हवदि असम्मूढो चेदा सद्दिट्ठि सव्वभावेसु । सो खलु अमूढदिट्ठी सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो।
जो नहीं करते जुगुप्सा सब वस्तुधर्मों के प्रति। वे आतमा ही निर्जुगुप्सक समकिती हैं जानना ।।