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कर्ताकर्माधिकार
जम्हा दु अत्तभावं पोग्गलभावं च दो वि कुव्वंति। तेण दु मिच्छादिट्ठी दोकिरियावादिणो हुंति ।।
यदि आतमा जड़भाव चेतनभाव दोनों को करे।
तो आतमा द्विक्रियावादी मिथ्यादृष्टि अवतरे॥ क्योंकि वे ऐसा मानते हैं कि आत्मा के भाव और पुद्गल के भाव - दोनों को आत्मा करता है; इसीलिए वे द्विक्रियावादी मिथ्यादृष्टि हैं।
. (८७-८८) मिच्छत्तं पुण दुविहं जीवमजीवं तहेव अण्णाणं। अविरदि जोगो मोहो कोहादीया इमे भावा।। पोग्गलकम्मं मिच्छं जोगो अविरदि अणाणमज्जीवं। उवओगो अण्णाणं अविरदि मिच्छं च जीवो दु॥ मिथ्यात्व-अविरति-जोग-मोहाज्ञान और कषाय हैं। ये सभी जीवाजीव हैं ये सभी द्विविधप्रकार हैं। मिथ्यात्व आदि अजीव जो वे सभी पुद्गल कर्म हैं।
मिथ्यात्व आदि जीव हैं जो वे सभी उपयोग हैं। जीवमिथ्यात्व और अजीवमिथ्यात्व के भेद से मिथ्यात्व दो प्रकार का है। इसीप्रकार अज्ञान, अविरति, योग, मोह और क्रोधादि भी जीव
और अजीव के भेद से दो-दो प्रकार के होते हैं। __जो मिथ्यात्व, योग, अविरति और अज्ञान अजीव हैं; वेतो पौद्गलिक कर्म हैं और जो अज्ञान, अविरति और मिथ्यात्व जीव हैं, वे उपयोग हैं।
(८९) उवओगस्स अणाई परिणामा तिण्णि मोहजुत्तस्स । मिच्छत्तं अण्णाणं अविरदिभावो य णादव्वो।।
मोहयुत उपयोग के परिणाम तीन अनादि से। .जानो उन्हें मिथ्यात्व अविरतभाव अर अज्ञान ये ॥