________________
अधिकार में था। एवं सभी को इस का विचार करना पड़ा और सभी में मत भेद उपस्थित हुआ । इनमें एक पक्ष नीति और प्रचलित ज्ञाति-प्रथाओं का अभिमानी और दूसरा अधिकार तथा लक्ष्मी का दास बनकर अनीति को अपनानेवाला हुआ। इस प्रकार केवल पोरवाड में ही नहीं सभी महाजन ज्ञातियों में यह पक्ष भेद होकर सभी में दसा बीसा का भूत खडा हुआ ।
जिस समय यह भेद उपास्थित हुआ उस समय विधवा विवाह बंद था अतः समयानुसार जो हुआ सो विपरीतही हुआ, परंतु जब हमें इतिहास दिखाता है कि, केवल एक बिधवा को संतती के कारण दसा पोरवाड मूल पोरवाडों से अलग किये गये तो विधवा विवाह के हिमायतियों को चाहिये कि, विधवा विवाह ज्ञाति में प्रचलीत करते समय दसाओं को मूल ज्ञाति में सम्मिलित कर लेवें । क्योंकि फिर दसा और वीसा में भेद भाव वा उच्च-निम्नता का प्रभ ही कहां रहा । यों तो दसाओं मे विधवा विवाह प्रचलित किया गया नहीं। केवल विधवा जात संतान का पक्षपात किया गया है । परंतु आजकल विधवा विवाह का प्रश्न बहुत महत्व का तथा विचारणीय हो रहा है, और इस संबंध का विचार होने की आवश्यकता है। परंतु यहा विषयांतर के भय से लेखनी को रोकनाही ठीक होगा। अस्तु ! इस प्रकार उच्चनीच