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लोगों के धार्मिक तथा उच्च कुल वा उच्च जातीयता के भावों पर कुठाराघात किये बिना ऐक्य होना अशक्य था । उस समय तो ठीकही, अब भी भारत में उच्च गिनी जानेवाली जातियों में प्रतिलोम संबंध की प्रजा निम्न श्रेणि ही की गिनी जाती है और उस के साथ खानादि व्यवहार भी नहीं किया जाता अतः वस्तुपाल तेजपाल और उन के साथियों को अपनी अपनी उच्च श्रेणि की मुख्य ज्ञातियों से अलग होना पड़ा इस में आश्चर्य क्या ? और ऐसे निम्न समझे गये बहिष्कृत लोग सम्मिलित न किये जाने से उन की दसा नाम से संलग्न अलग अलग ज्ञातियां ही बनी रही इस में भी आश्चर्य क्या ?
एक की फूट चौरासी में क्यों ?
श्रीमाल में जो भिन्न भिन्न महाजन ज्ञातियां बनी उन प्रचलित था, और बृहत
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का आपसी खान पानादि व्यवहार भोज के समय वे सब एकत्र हुआ करती थी । भिन्नमालसे जाकर गुजरात आदि प्रांतों में जो भी महाजन लोक जा बसे तो भी उनका परस्पर व्यवहार स्थगित होने का कहीं उदाहरण नहीं मिलता। विधवा जात पुत्र वस्तुपाल तेजपाल को पोरवाड जाति यदि ग्रहण करती तो अनीति का आदर तथा सभी महाजन ज्ञाति से विभक्तता होती । अर्थात् महाजनों की प्रथानुसार ऐसा करना सभी एकत्रित महाजन ज्ञातियों के