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मास प्रासादे वर्षमा चार प्रौढ रथ-यात्रा निपजावी । करीचार वार प्रौढ साधर्मिक ने संतोष्या * * * श्रीमंत मंत्रीए संघयात्राना दरेक मनुष्य ने पाटणमां सुवर्ण महोर दीधी * * * ८ कोडी अने ९३ लाख टका यात्रा स्नान, प्रसाद बिंध स्थापनाए श्री पुंडरिक गिरीए आत्म हेतुना कारण माटे छुटभी वापर्यो । वली अठारह कोडी अने ८३ लाख टका श्री रेबता चले सुततिए-छुट थी कीधा-खर्चा पुनः बारह कोडी अने ५३ अधिक श्री अर्बुदा चले सुत्ततिए कीधा। एटले ओगणीस कोडी एंसी लाख हजार वीस हजार नवसे अने नवाणुंटका ते नव चोकडी एउणा एटलो द्रव्य मंत्री श्री वस्तुपाले प्रिहुं तेथी सुत्ततिए कीधा । पुनः कवित,
पांच अरब ने खरब कीध जेणि जिमण बारह, सात अरब नि खरब दधि दुव्वल परिवारह, द्रव्य पचासिय कोडि कीध भोजक वर भट्टां, सत्ताणुए कोडी फल तंबोली हट्टां, चंदन चीर कपूर मई कोडी बहुत्तरि कापडे, पोरवाड़ वंश श्रवणे श्रुष्यो श्री वस्तुपाल महि मंडले ॥
वस्तुपाल तेजपाल का रास । संवत १७२१ में अनुवादक पंडित मेरुविजय, अपने रास में वस्तुपाल तेजपाल के ज्ञाति भोजन का विचार वर्णण इस तरह करते है:
भुपत में भलू साजनूं, नातसमो नहि कोय, एम जाणी मंत्री वली, साजनुं मेले सोय, नातचोराशि त्यां वसे, मंत्री दीये झाझा मान, धवलक पुर रलियामणुं त्यांनात मिली अभिराम ॥४॥