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चली हैं। हजारों लोक कन्याओं न मिलनेसे अविवाहित रह जाते हैं । कहीं कन्याओं को योग्य वर नहीं मिलते और उन्हें जान बूझकर अयोग्य पुरुषों को देना पडता है । अतएव हरएक ज्ञाति के समझदार लोंगो को चाहिये कि जो बंधन आत्मनाशक हों उन्हें तोड तोड कर वे अपनी ज्ञाति को क्षय से बचाने का प्रयत्न करें । परंतु खासकर महाजनों की मानसिक तीव्रताका -हास हो गया है । थोडा चलन विचलन करके वे थंडे हो जाते हैं। सामने वाला जो भी अत्यंत त्रास दाता हो तो भी अपने स्वार्थ के सन्मुख वे किसी बात की पर्वाह नहीं करते । उनको कितने भी दबाये जावें परंतु उस दबाव को फेंककर उछलकर खडे होने की उनमें हिम्मत नहीं । अनिष्ट रुढियां दूर करने की इच्छा से खडे होने की देर है. कि अवश्य साथीदार मिल जायेंगें । ऐसे कार्य · हिम्मत से हुआ करते हैं। एक हिम्मतवान उठ खडा हुआ कि उसी विचार के कमजोर लोक उसे आ मिलते हैं। सेंकडों वर्ष पहिले ज्ञातियों के जो नियम बने हैं वे उस सयय की परिस्थित्यानुसार बने हैं । प्रस्तुत समय और है परिस्थिती और है । ऐसे समय यदि हमने परिस्थिती के अनुसार ज्ञाति के नियमों में परिवर्तन न किया तो अब उसका अनिष्ट परिणाम हुए बिना रहेगा नहीं । ज्ञातिजनों की संख्या शनैः शनैः घट रही है। मालवे में पौरवालों की संख्या २० वर्ष पहिले जितनी थी उससे आज आधी रह गई है । सेन्सस रिपोर्ट भी