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श्री.
प्रस्ताविक बोल.
किसी जाति विशेषका इतिहास लिखना और देशका सर्व साधारण इतिहास लिखना इस में मह - दंतर है । भारत में ज्ञातियों की जैसी उलझन है वैसी प्रायः और किसी देश में नहीं है । इस ज्ञाति वैचित्र्य के कारण के संबंध में लोक अपनी मनमानी कल्पनायें, निराधार वाकपांडित्य तथा ब्राह्मणों की द्वेषरूप कई बातें जन समुदाय के सन्मुख रखा करते हैं; परंतु यह पुस्तक लिखने के पहिले तक इन लोगों की जाति विषयक दलीलोंसे मेरा समाधान नहीं हुआ और मैं पोरवाड जाति के इतिहास के साथ साथ इसी विषयसे संबंध रखने वाले ज्ञातियों की उत्पत्ति के खास कारणों की भी खोज करने का प्रयत्न करने लगा । फलतः कई ग्रंथों के अनुशीलन के पश्चात इस संबंध में जो मेरा मत निश्चित हुआ वह मैने इसी प्रथमें ग्रथित करना ठीक समझकर ज्ञातियों की उत्पति से ही इसका प्रारंभ करना निश्चित किया ।
प्रथम प्रकरण पढकर पाठक अवश्य समझेंगे कि इन्हीं अयोग्य बंधनो के कारण आज कई ज्ञातियां क्षय रोगी बन