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आचार्य श्री बुद्धिसागरजी सूरिकृत धातुप्रतिमा लेख संग्रह में सं० १४९५ के एक लेख में “ उकेशवंशे साहुशाखायां" ऐसे शब्द हैं । साहू का अर्थ सज्जन है। वृद्ध शाखावाले अपने गौरव के वास्ते अपनी तड़ को यह शब्द लगाते होना चाहिये । इसी संग्रह में आगे ऐसे ही दो लेख मिलते हैं । श्रीयुत नाहर साहब के लेख-संग्रह में एक लेख साधुशाखा नाम का है। अर्थात् इस शब्द की योजना बीसा अथवा वृद्धशाखा के बदले में की जाना संभवनीय है । इस संग्रह में,
संवत ९०० से १५०० तक के ४१५ लेख में ल. शा. का १ सं. १५०० का लेख है । अन्य कोई लेख नहीं। संवत १५०० के पीछे के लेखों में यह भेदाभेद देखने में आता है । सं. १५१५ के एक लेख में "सिद्ध संताने" लिखा है। सं. १५१७ में “ लघुसंतानीय दोसी महिराज" ऐसा लिखा है। सं. १५७५ के लेख में " श्रीमाल ज्ञा. लघुसंतानीय" तथा सं. १५१९ के लेख में “ लघुशाखायां" ऐसा लिखा है । पाठकों के अवलोकनार्थ श्री. पूर्णचंद्रजी नाहर के संपूर्ण लेखसंग्रह का दसावीसा के संबंध का दोहन करके निम्न टेबल में बताया है।