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प्रथम तो दसा और बसा ये संख्या वाचक शब्द होते हुए ज्ञातियों को लगने से उसका क्या अर्थ होता है और वे किस बात के सूचक हैं, इसका ठीक ठीक खुलासा होने की आवश्यकता है । इस बात का खुलासा करनेवाला एक लेख सूरत जिला के चिखली तालुका में चिखली से लगभग दो कोसपर मजिगांव की सिमा में “ मल्लिकार्जुन " महादेव के मंदिर में मिला है । इस लेख में " दशा - वीसा " के अर्थ का स्पष्ट खुलासा किया गया है। यह मंदिर संवत १६७९ में सूरत के डीडू नामक महाजन का बनवाया हुआ है । उस में लिखा है कि:-
मल्लिकार्जुन के मंदिर का शिलालेख ।
श्रीगणेशायनमः ॥ संवत १६७९ वरषे शाके १५४५ प्रवर्तमाने मते श्रीसूर्ये ग्रीषम र (ॠ) तैं महामंगल प्रद वैशाख मासे शुक्ल पक्षे १२ गुरुवासरेंसी नक्षत्रे सिधी जो [ यो ] गे तद्य प्रारंभ प्रासाद मूर्त पादस्त श्री जांगीर साहा विजय राज्ये प्राणे चिखली देसाई नामक प्रागजी भ्राता सूरजी प्रासादः कर्ता. सूरत बंदरे वास्तव्य तपसी रघुनाथभट गीरनारा आशिर्वाद पारेख माधवसुत परिख रामा सूत परिख राजपाल, सूत परींख कीका सूत परीख नाथजी भाया बाई बबाई पिता परीख सहस्त्र कीर्ण शीरंगनी दीकरी तेना सूत २ परीख कहान नी यी मानबाई सीहा भाई आनी दीकरी