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पूर्यमाण भवार्णव तारण क्षम मनुष्य जन्मथान पात्रेण प्राग्वाट वंशावतंस सं. सागर [ मांगण ] सुत सं. कुरपाल भा. कामलदे पुत्र परमात धरणा केन ज्येष्ट भ्रातृ सं. रत्ना भा. रत्नादे पुत्र मं. लाखा म [ स ] जा सोना सालिग स्व. भा. स. धांरलदे पुत्र जाज्ञा जावडनि प्रवर्द्धमान संतान युतेन राणपुर नगरे राणा श्री कुंभकर्ण नरेन्द्रेण स्वनाम्ना निवे शितेतदीय सुप्रसादा देशत त्रैलोक्य दीवकाभिधानः श्री चतुर्मुख युगादिश्वर विहार करितः प्रतिष्ठितः श्री वृहत्तपा गच्छे श्री जंगचंद सूरि श्री देवेन्द्र सूरि संताने श्रीमत् श्री देव सुंदर सूरि पट्ट प्रभाकर परम गुरु सुविदित पुरंदर गच्छाधिराज श्री सोमसुंदर सूरिभिः ॥ कृतमिदंच सूत्रधार देपाकस्य अयंच श्री चतुर्मुख विहारा: आचंद्रार्क नंदाताद |
॥ शुभं भवतु ॥
अतः उपलब्ध प्रमाणों से प्राग्वाट पूर्व से पुरुखा की ओर से आये हुए ही सिद्ध होते हैं । पोरवाड शब्द प्राग्वाट से और पोरवाल शब्द से पौरव कुल के होना निश्चित होने के पश्चात अब हमें देखना है कि ये लोक क्षत्रिय होते हुए aa और क्यों वणिक महाजन बने और क्षात्र वृत्तिका त्याग क्यों किया ? इस संबंध का अभी एक ही प्रमाण उपलब्ध हुआ है । वह है कप्प सूरिकृत पट्टावली । यह जो भी इतनी विश्वसनीय नहीं तो भी अन्य प्रमाणों के अभाव में इसे प्रमाणभूत क्यों न माना जावे ? उक्त पट्टावली में लिखा है