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नाना दुर्ग लीला मात्र ग्रहण प्रमाणित जित काशित्वाभिमानस्य । निज भुजोर्जित समुपार्जितानेक भद्र गजेन्द्रस्य ! म्लेंछ महिपाल व्याल चक्रवाल विदलन विहंग मेन्द्रस्य .... आदि ।
__ ऐसे प्रतापि लिखे हैं तो संभवनीय है कि " प्राग्वाट" भी कोई समय इनोंने पादाक्रांत किया हो । पाठकों के अवलोकनार्थ संपूर्ण प्रशस्ति नीचे दी जाती है,
रेनपुर तीर्थ-मदिर की प्रशस्ति । " स्वस्ति श्री चतुर्मुख जिनयुगादिश्वरायनमः "
श्रीमद्विक्रमतः १४९६ संख्य वर्षे श्रीमेदपाट राजाधिराज श्रीवप्प १ श्रीगुहिल २ भोज ३ शील ४ काल भोज ५ भर्तृभर ६ सिंह ७ सहायक ८ राज्ञी सुत युतस्य सुवर्ण तुला तोलक श्री खुम्माण ९ श्रीमदल्लट १० नूरवाहन ११ शक्तिकुमार १२ शुचिवर्म १३ कीर्तिवर्म १४ जोगराज १५ वैरट १६ वंशपाल [ हंसपाल ] १७ वैरिसिंह १८ वरिसिंह १९ श्री अरिसिंह २० चोडसिंह २१ विक्रमसिंह २२ रणसिंह २३ क्षेमसिंह २४ सामंतसिंह २५ कुमारसिंह २६ प्रथमसिंह २७ पद्मासंह २८ जैत्रसिंह २९ तेजस्विसिंह ३० समरसिंह ३१ चहुमान श्री कौतूक नृप श्री अल्लावदीन सुरत्राण जैत्रवप्प वंश श्री भुवनसिंह ३२ सुत श्री जयसिंह ३३ मालवेश गोगादेव जैत्र श्रीलक्ष्म[ण] सिंह ३४ पुत्र अजयसिंह ३५ भ्रातु श्रीअरिसिंह